


राजस्थान में ग्राम पंचायतों और नगरीय निकायों के चुनाव टालने से विकास कार्य प्रभावित
सीकर: राजस्थान में छह हजार से अधिक ग्राम पंचायतों और पचास से ज्यादा नगरीय निकायों का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है, लेकिन अब तक इन संस्थाओं के चुनाव की तिथियों की घोषणा नहीं की गई है। राज्य निर्वाचन आयोग भी चुनाव की संभावित तिथियों को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दे सका है। हालांकि राज्य सरकार द्वारा नवम्बर माह में चुनाव कराने की बात कही जा रही है, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता संदीप कलवानिया ने राज्य निर्वाचन आयोग से सूचना के अधिकार के तहत जवाब मांगा। आयोग ने जवाब में बताया कि वर्तमान में नगरीय निकायों और पंचायतीराज संस्थाओं के पुनर्गठन एवं पुनर्सीमांकन की प्रक्रिया चल रही है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही चुनाव कार्यक्रम घोषित किया जाएगा।
जब तक चुनाव नहीं होते, तब तक इन संस्थाओं का काम प्रशासकों के माध्यम से चलाया जा रहा है। इससे आम लोगों के कई जरूरी कार्यों में देरी हो रही है। कई क्षेत्रों में विकास कार्य भी रुके हुए हैं। नगर निकायों से संबंधित फाइलें अब जिला कलक्टर व अपर जिला कलक्टर कार्यालय तक पहुंच रही हैं, जिससे मामूली स्वीकृतियों में भी काफी समय लग रहा है।
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कानूनी प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 243 (E) और (U) के अनुसार, पंचायतों और नगरीय निकायों का कार्यकाल पांच साल तय है और कार्यकाल समाप्त होने के बाद चुनाव कराना अनिवार्य है। चुनाव समय पर नहीं होना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन माना जा सकता है।
पुनर्गठन में उठे विवाद
राज्य सरकार इस समय निकायों के पुनर्गठन और पुनर्सीमांकन में लगी हुई है, लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर कई स्थानों पर विवाद खड़े हो गए हैं। कई इलाकों में मनमाने तरीके से सीमांकन के आरोप लगे हैं, जिससे स्थानीय जनता में नाराजगी है।
सरकार का पक्ष
राज्य सरकार का दावा है कि वह “वन स्टेट वन इलेक्शन” के सिद्धांत पर काम कर रही है। सरकार का कहना है कि बार-बार चुनाव होने से आचार संहिता लगती है, जिससे विकास कार्य प्रभावित होते हैं और सरकारी खर्च भी बढ़ता है। इसीलिए सभी चुनावों को एक साथ कराने की योजना बनाई जा रही है।