


सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक सेवा में सीधे प्रवेश को लेकर 20 साल पुरानी व्यवस्था को समाप्त करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अब लॉ ग्रेजुएट्स को जज बनने के लिए न्यूनतम तीन साल का वकालत अनुभव जरूरी होगा।
2002 में खत्म की गई थी यह शर्त
2002 से पहले यह अनिवार्यता लागू थी, लेकिन 2002 में इसे समाप्त कर दिया गया था, जिससे फ्रेश लॉ ग्रेजुएट्स सीधे न्यायिक सेवा में आ रहे थे। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ—चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन—ने कहा कि पिछले दो दशकों में बिना किसी व्यावहारिक अनुभव के सीधे नियुक्त हुए न्यायिक अधिकारियों से कई समस्याएं उत्पन्न हुई हैं।
प्रशिक्षण और किताबी ज्ञान से नहीं बनते सक्षम जज
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ किताबी ज्ञान और न्यायिक अकादमी में मिला प्रशिक्षण, कोर्ट के व्यावहारिक अनुभव की बराबरी नहीं कर सकता। एक जज को पहले ही दिन से जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति और प्रतिष्ठा जैसे गंभीर विषयों पर फैसले करने होते हैं, ऐसे में व्यावसायिक अनुभव अत्यंत आवश्यक है।
नई व्यवस्था के निर्देश
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न्यायिक सेवा में आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों को कम से कम 10 वर्षों से वकालत कर रहे वकील से तीन साल की अनुभव प्रमाण-पत्र लेना होगा।
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इस प्रमाण-पत्र की पुष्टि संबंधित जिले के न्यायिक अधिकारी करेंगे।
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वकालत की अवधि उस तारीख से मानी जाएगी जब बार में पंजीकरण हुआ हो, न कि किसी पद पर नियुक्ति से।
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लॉ क्लर्क के रूप में कार्यरत लॉ ग्रेजुएट्स की सेवाओं को भी अनुभव में शामिल किया जाएगा।
भविष्य की भर्तियों पर लागू होगा नियम
यह नियम उन्हीं भर्तियों पर लागू होगा जो भविष्य में शुरू होंगी। जिन प्रक्रियाओं की अधिसूचना पहले ही जारी हो चुकी है, वे इस नियम से प्रभावित नहीं होंगी।
सभी राज्यों को सेवा नियम बदलने के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने सेवा नियमों में आवश्यक संशोधन करें ताकि यह व्यवस्था पूरे देश में प्रभावी ढंग से लागू हो सके।
यह निर्णय न्यायिक प्रणाली की गुणवत्ता को सुधारने और न्यायिक पदों पर अधिक अनुभवी एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण रखने वाले अधिकारियों की नियुक्ति सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।