


तमिलनाडु शराब घोटाले में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, ईडी की जांच पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु राज्य विपणन निगम (TASMAC) के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) की मनी लॉन्ड्रिंग जांच और छापेमारी पर रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में न्यायमूर्ति बीआर गवई और एएस बोपन्ना की पीठ ने इस कार्रवाई को देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन बताया।
ईडी कर रही हदें पार: सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश गवई ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “ईडी सारी हदें पार कर रहा है। आप संविधान का पालन नहीं कर रहे हैं। आप राज्यों के अधिकार क्षेत्र में सीधे दखल देकर संघीय ढांचे की नींव को चुनौती दे रहे हैं।” कोर्ट ने कहा कि किसी भी राज्य की स्वामित्व वाली कंपनी के खिलाफ, राज्य की सहमति के बिना इस तरह की जांच देश के संघीय ताने-बाने को नुकसान पहुंचाती है।
कपिल सिब्बल ने रखा राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि 2014 से 2021 तक TASMAC से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों में राज्य सतर्कता विभाग द्वारा 41 एफआईआर दर्ज की गईं। उन्होंने कहा कि ईडी ने 2025 में अचानक कार्रवाई शुरू की और बिना राज्य सरकार की सहमति के चेन्नई स्थित कार्यालयों पर छापे मारे, अधिकारियों के मोबाइल फोन और उपकरण जब्त कर लिए।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को दी चुनौती
तमिलनाडु सरकार ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें ईडी को जांच जारी रखने की अनुमति दी गई थी। याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना किसी केंद्रीय एजेंसी द्वारा राज्य की सीमाओं में इस तरह की जांच संघीय ढांचे के विरुद्ध है।
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ईडी की कार्रवाई और न्यायिक टिप्पणी
ईडी ने मार्च 2025 में चेन्नई सहित 20 से अधिक स्थानों पर छापे मारे थे। यह कार्रवाई भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं की शिकायतों के आधार पर की गई थी। कोर्ट में बहस के दौरान यह भी स्पष्ट किया गया कि मोबाइल फोन की जब्ती को न्यायिक रूप से जायज ठहराया गया, लेकिन कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि एजेंसी की इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और राज्य की भूमिका का सम्मान होना चाहिए।
फैसले का महत्व
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी और आदेश न केवल ईडी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं, बल्कि यह संघीय ढांचे और राज्यों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक नजीर भी बन सकता है। इस फैसले से केंद्रीय एजेंसियों की सीमाओं और राज्यों की संवैधानिक स्वायत्तता को लेकर नया विमर्श शुरू हो गया है।