


कश्मीर में 13 मई को श्रीनगर लोकसभा सीट के लिए मतदान होगा. कश्मीर में रहने वाले कई कश्मीरी पंडितों की इस चुनाव को लेकर अलग-अलग राय है.
संजय टिक्कू लंबे समय के बाद अपने घर से दो किलोमीटर दूर झेलम दरिया के किनारे गणपतयार मंदिर में पूजा के लिए आए थे. उन्हें इस चुनाव से ज़्यादा उम्मीदें नहीं हैं.
टिक्कू कहते हैं कि बीते 35 सालों में सरकार ने उनके यानी कश्मीर में रहने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ ख़ास नहीं किया है, ऐसे में उनके पास चुनाव के लिए उत्साहित होने की कोई वजह नहीं है.

संजय टिक्कू कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष हैं जो कश्मीर में रहने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए काम करते हैं. वो श्रीनगर के बर्बर शाह इलाके़ में रहतेटिक्कू कहते हैं, ”आप ये सुनकर हैरान हो जायेंगे कि नब्बे के दशक में जब कश्मीरी पंडितों ने पलायन करना शुरू किया तो उसके बावजूद कश्मीर में 32 हज़ार कश्मीरी पंडित रहते थे. लेकिन इस समय ये संख्या 800 से भी कम हो गई है. उसका एक कारण तो सुरक्षा है. दूसरा ये कि आज तक कश्मीरी पंडितों के आर्थिक उत्थान के लिए कुछ नहीं किया गया.”
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“अगर आप पूरे कश्मीरी पंडित समुदाय की बात करेंगे तो सिर्फ साल 2010-11 में केंद्र सरकार ने विस्थापित हुए पंडितों के लिए एक पैकेज शुरू किया था. इसमें क़रीब 6 हज़ार कश्मीरी पंडितों को पीएम या प्रधानमंत्री पैकेज के तहत नौकरियां दी गई थीं. जो कश्मीरी पंडित कश्मीर से विस्थापित नहीं हुए, तो उस वक़्त के मुख्यमंत्री मुफ़्ती सईद ने 200 से अधिक लोगों को नौकरियां दी थीं. बीते 35 सालों में कश्मीरी पंडितों के लिए इतना ही किया गया है.