राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भारतीय रेलवे की कैटरिंग सेवाओं में कथित रूप से केवल हलाल प्रमाणित मीट परोसे जाने के आरोपों पर गंभीर रुख अपनाया है। आयोग ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष को नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह के भीतर विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
शिकायत में क्या कहा गया?
एक शिकायतकर्ता ने NHRC को भेजे आवेदन में दावा किया कि ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों पर दिए जाने वाले भोजन में ज्यादातर स्थानों पर केवल हलाल प्रक्रिया से तैयार मीट ही उपलब्ध कराया जा रहा है। शिकायतकर्ता के अनुसार यह प्रथा उन यात्रियों की धार्मिक भावनाओं को प्रभावित करती है जो हलाल मीट का सेवन नहीं करना चाहते। उनका तर्क है कि यह स्थिति धार्मिक स्वतंत्रता और उपभोक्ता अधिकारों से संबंधित संवैधानिक संरक्षणों का उल्लंघन कर सकती है।
पुराना विवाद फिर चर्चा में
रेलवे में परोसे जाने वाले मीट के प्रकार को लेकर विवाद कोई नया नहीं है। समय-समय पर विभिन्न मंचों, याचिकाओं और जन अभियानों के जरिए यह मुद्दा उठता रहा है। हालांकि IRCTC ने पहले भी कहा है कि हलाल प्रमाणपत्र अनिवार्य नहीं है और सभी समुदायों के आपूर्तिकर्ताओं को अवसर मिलता है, लेकिन आलोचकों का आरोप है कि अधिकांश सप्लायर व्यावहारिक रूप से हलाल प्रमाणन का ही पालन करते हैं।
NHRC ने क्यों लिया संज्ञान?
आयोग ने शिकायत में उठाए गए मुद्दों को मौलिक अधिकारों से जुड़ा माना है। विशेष रूप से धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25), समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14) और व्यवसाय की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(g)) से संबंधित प्रश्नों को देखते हुए NHRC ने इसे मानवाधिकार के दायरे में आने वाली गंभीर शिकायत माना। इसी आधार पर रेलवे बोर्ड को विस्तृत जवाब देने का आदेश दिया गया है।
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आगे क्या संभावनाएं?
रेलवे को अब यह स्पष्ट करना होगा कि उसके कैटरिंग नियम, सप्लायर गाइडलाइंस और खरीद प्रक्रियाएं किस प्रकार सुनिश्चित करती हैं कि किसी विशेष धार्मिक प्रक्रिया को अनिवार्य न माना जाए। आने वाली रिपोर्ट के आधार पर NHRC आगे की कार्रवाई तय करेगा। यह मामला रेलवे के खाद्य प्रबंधन और उपभोक्ता अधिकारों से जुड़े व्यापक सवालों को फिर से केंद्र में ले आया है।
