


बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या और जबरन धर्मांतरण पर इस्कॉन ने जताई चिंता
बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले हो रहे हैं, जिसमें हत्या, जबरन धर्मांतरण और भीड़ द्वारा हिंसा की घटनाएं शामिल हैं। इस्कॉन कोलकाता के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता राधारमण दास ने सोमवार को गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इन घटनाओं पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुप्पी है, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने हालिया घटनाओं को लेकर दुनिया भर की मानवाधिकार संस्थाओं से सवाल किया है।
राधारमण दास ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “बांग्लादेश में जो हो रहा है वह दिल दहला देने वाला है। महिलाओं और नाबालिग लड़कियों का अपहरण हो रहा है, लेकिन पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं की जा रही। लोग केवल अपने धर्म की वजह से नौकरियां खो रहे हैं और जबरन धर्मांतरण के लिए मजबूर किए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की यह खामोशी बेहद चौंकाने वाली है।”
उन्होंने चिन्मय प्रभु का जिक्र करते हुए कहा कि एक साल से अधिक समय से उन्हें जेल में रखा गया है। जमानत मिलने के बावजूद उन्हें एक और झूठे मामले में फंसा दिया गया। उन्होंने कहा कि यह केवल हिंदुओं के खिलाफ नहीं है, बल्कि ईसाई और बौद्ध समुदाय भी इस उत्पीड़न के शिकार हैं।
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राधारमण दास ने बताया कि अगस्त 2024 में हुए राजनीतिक विद्रोह के बाद, जिसमें प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाया गया था, बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है। इसके बाद भीड़ हिंसा और मॉब लिंचिंग की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है।
कनाडा स्थित ‘ग्लोबल सेंटर फॉर डेमोक्रेटिक गवर्नेंस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024-25 के दौरान बांग्लादेश में मॉब लिंचिंग की घटनाओं में पिछले वर्ष की तुलना में बारह गुना वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में 51 मौतें दर्ज की गई थीं, जबकि 2024-25 में यह संख्या बढ़कर 637 हो गई। इन मृतकों में 41 पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं।
4 अगस्त 2024 को जशोर के एक होटल में 24 लोगों को जिंदा जला दिया गया, वहीं 25 अगस्त को रूपगंज, नारायणगंज स्थित गाजी टायर्स में भीषण आग में 182 लोगों की मौत हो गई।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि सख्त मीडिया सेंसरशिप के कारण कई घटनाओं की जानकारी और पीड़ितों के नाम सामने नहीं आ सके।
‘ग्लोबल सेंटर फॉर डेमोक्रेटिक गवर्नेंस’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह हिंसा बांग्लादेश में कानून-व्यवस्था की गंभीर विफलता और राजनीतिक अस्थिरता को दर्शाती है।
राधारमण दास ने अंत में कहा, “हमें अब मौन नहीं रहना चाहिए। यह समय है जब पूरी दुनिया को इस उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।”