

राजस्थान में बुलेट ट्रेन जैसी हाई स्पीड ट्रेनों के परीक्षण के लिए बनाए जा रहे देश के पहले हाई स्पीड रेलवे ट्रायल ट्रैक का 80% से अधिक कार्य पूरा हो चुका है, लेकिन अब यह परियोजना संकट में फंसती नजर आ रही है। जयपुर-जोधपुर रेलमार्ग पर स्थित यह ट्रैक सांभर झील क्षेत्र में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी के अभाव में अधर में लटका हुआ है।
सांभर झील पर 2.5 किमी ट्रैक की मंजूरी लंबित
रेलवे ने वर्ष 2019-20 में 64 किमी लंबे हाई स्पीड ट्रायल ट्रैक की घोषणा की थी और 2020 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ। ट्रैक का अधिकांश हिस्सा नावां के पास गुढ़ा से लेकर मीठड़ी तक और सांभर झील के आसपास प्रस्तावित है। परियोजना का लगभग 80% हिस्सा बन चुका है, लेकिन सांभर झील के वेटलैंड क्षेत्र में 2.5 किमी के हिस्से के लिए अब तक मंजूरी नहीं मिल पाई है।
पिछले तीन वर्षों में रेलवे ने राज्य सरकार और केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय को कई प्रस्ताव भेजे हैं, लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से आपत्ति आ खड़ी हुई। रेलवे अधिकारियों के अनुसार, इस कारण अन्य तकनीकी काम भी रुक गए हैं और जब तक यह हिस्सा पूरा नहीं होता, ट्रायल ट्रैक का संचालन शुरू नहीं किया जा सकता।
रामसर साइट बनाम राष्ट्रीय महत्व की परियोजना
राज्य सरकार की स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी का कहना है कि सांभर झील एक अंतरराष्ट्रीय रामसर साइट है, जहां नए निर्माण प्रतिबंधित हैं। दूसरी ओर रेलवे का तर्क है कि इस झील क्षेत्र में पहले से ही नमक परिवहन के लिए रेल ट्रैक और जयपुर-जोधपुर मुख्य रेललाइन मौजूद हैं। ऐसे में केवल 2.5 किमी के ट्रैक को रोकना राष्ट्रीय परियोजना के भविष्य के लिए घातक साबित हो सकता है।
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रेलवे ने अब एक बार फिर राज्य सरकार से संवाद कर इस हिस्से की मंजूरी दिलाने की योजना बनाई है।

भविष्य की योजनाएं: बुलेट ट्रेन के ट्रायल की उम्मीद
इस हाई स्पीड ट्रायल ट्रैक के चालू होने से भारत में नई ट्रेनों और वैगनों का परीक्षण बिना सामान्य रेल यातायात को बाधित किए किया जा सकेगा। यही नहीं, भविष्य में बुलेट ट्रेन के कोच और इंजनों के ट्रायल भी इसी ट्रैक पर संभव होंगे। यह ट्रैक 200 किमी प्रति घंटे की गति से ट्रायल की सुविधा देगा, जो रेलवे के लिए एक गेमचेंजर साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों की राय: देरी भारी नुकसान का कारण
पर्यावरण और रेलवे विशेषज्ञों का मानना है कि यह परियोजना राष्ट्रीय महत्व की है और मौजूदा पटरियों को देखते हुए अनुमोदन में अनावश्यक देरी नहीं होनी चाहिए। यह रुकावट न केवल करोड़ों रुपये के निवेश को संकट में डाल सकती है, बल्कि वर्षों की मेहनत को भी व्यर्थ कर सकती है।
ट्रैक के दिसंबर 2025 तक शुरू होने का लक्ष्य तय किया गया है, लेकिन यदि अनुमति समय पर नहीं मिली तो यह समयसीमा भी खिसक सकती है, जिससे लागत और समय दोनों बढ़ना तय है।