

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: वैवाहिक विवाद में पति-पत्नी की रिकॉर्ड की गई कॉल बन सकती है साक्ष्य
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि तलाक जैसे वैवाहिक विवादों में पति-पत्नी के बीच रिकॉर्ड की गई टेलीफोन बातचीत को कोर्ट में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
यह मामला पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ था, जिसमें कहा गया था कि इस तरह की बातचीत को रिकॉर्ड करना निजता का उल्लंघन है और इसे साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि अगर वैवाहिक संबंध इस हद तक खराब हो चुके हों कि दोनों पक्ष एक-दूसरे पर नजर रख रहे हों, तो यह अपने आप में रिश्ते में विश्वास की कमी को दर्शाता है। इस स्थिति में यदि कोई पक्ष टेलीफोन पर की गई बातचीत को रिकॉर्ड करता है, तो यह निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
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कॉल रिकॉर्डिंग को माना वैध साक्ष्य:
पीठ ने कहा कि ऐसी रिकॉर्डिंग भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के तहत स्वीकार की जा सकती है, क्योंकि यह धारा पति-पत्नी के बीच की गोपनीय बातचीत को साक्ष्य के रूप में प्रतिबंधित करती है, लेकिन इसमें अपवाद भी हैं, जो ऐसे मामलों में लागू होते हैं।

पूरा मामला क्या था:
यह मामला पंजाब के भटिंडा जिले की एक पारिवारिक अदालत से शुरू हुआ था, जहां एक पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत अपनी पत्नी के खिलाफ तलाक का मामला दायर किया था। पति ने पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाया और इसे साबित करने के लिए उसके साथ हुई फोन कॉल की रिकॉर्डिंग को कोर्ट में पेश किया।
परिवार अदालत ने इस रिकॉर्डिंग को प्रमाण के तौर पर स्वीकार कर लिया। इसके खिलाफ पत्नी ने हाई कोर्ट में अपील की, यह दावा करते हुए कि यह उसकी निजता का हनन है और उसकी सहमति के बिना रिकॉर्डिंग की गई थी।
हाई कोर्ट ने फैसले को पलटा:
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने माना कि पति ने बातचीत को गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया और इसमें निजता का उल्लंघन हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को किया खारिज:
अब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि वैवाहिक विवादों में ऐसे साक्ष्य की आवश्यकता हो सकती है और यदि कॉल रिकॉर्डिंग से क्रूरता या अन्य आरोपों को साबित किया जा सकता है, तो यह वैध साक्ष्य मानी जाएगी।