



कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 31 वर्षीय जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की वीभत्स घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। यह अपराध कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा और समाज में अपराधियों के प्रति कानून की कठोरता पर गहरे सवाल खड़े करता है।
इस मामले में सियालदह कोर्ट ने दोषी संजय रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन पीड़ित परिवार ने इस सजा से संतुष्टि जाहिर करते हुए अन्य दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है। लोग इसे ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ केस मानते हुए मृत्युदंड की मांग कर रहे हैं, क्योंकि यह अपराध न केवल क्रूरता की पराकाष्ठा है, बल्कि यह महिलाओं के प्रति समाज की मानसिकता में बदलाव की भी आवश्यकता को स्पष्ट करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों में हमेशा यह कहा है कि ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ के सिद्धांत के तहत, अगर अपराध असाधारण क्रूरता से किया जाए, तो उसे मृत्युदंड दिया जा सकता है। निर्भया मामले में भी इसी सिद्धांत के आधार पर दोषियों को मृत्युदंड दिया गया था। आरजी कर मामला भी इस सिद्धांत के तहत विचार किए जाने योग्य है, क्योंकि यह एक भयावह अपराध था, जिसने पूरे समाज को झकझोर दिया है।
दोषी संजय रॉय एक पुलिस वॉलंटियर था, और उसे सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उसने अपनी स्थिति का दुरुपयोग किया और न केवल पीड़िता के विश्वास को तोड़ा, बल्कि पूरे समाज के विश्वास को भी नुकसान पहुँचाया। इस अपराध ने मेडिकल क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं में भय का माहौल उत्पन्न कर दिया है। इस मामले में जन आक्रोश ने यह साबित कर दिया है कि समाज को ऐसे अपराधों के खिलाफ मजबूत कदम उठाने की आवश्यकता है।
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सत्र न्यायालय ने मृत्युदंड की सजा देने से परहेज किया, यह कहते हुए कि सजा का निर्धारण साक्ष्यों पर आधारित होना चाहिए, न कि सार्वजनिक भावनाओं के आधार पर। हालांकि, यह सवाल भी उठता है कि क्या इस मामले की क्रूरता को देखते हुए मृत्युदंड एक उचित दंड नहीं है।
यह मामला न्यायपालिका के सामने ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ सिद्धांत की एक गंभीर परीक्षा के रूप में खड़ा है, जो केवल असाधारण क्रूरता वाले अपराधों के लिए लागू होता है।