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बीकानेर

400 साल बाद भीमथड़ी घोड़े की नई नस्ल प्रमाणित, शिवाजी महाराज की विरासत पुनर्जीवित

editor
editor Published January 19, 2025
Last updated: 2025/01/19 at 12:16 PM
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Bhimthadi Horse Recognized After 400 Years, Reviving Shivaji Maharaj's Legacy
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400 साल बाद मिला भीमथड़ी घोड़े का अस्तित्व, शिवाजी महाराज की सेना की ऐतिहासिक विरासत पुनर्जीवित

बीकानेर: राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर ने घोड़ों की आठवीं भारतीय नस्ल, भीमथड़ी घोड़े को प्रमाणित कर भारत को ऐतिहासिक उपलब्धि दिलाई है। भीमथड़ी नस्ल, जिसे डक्कनी घोड़े के नाम से भी जाना जाता है, को भारत सरकार के राजपत्र में अधिसूचित किया गया है।

यह नस्ल छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना का हिस्सा थी और कई युद्धों में उपयोगी साबित हुई थी। करीब 400 साल बाद इस घोड़े की नस्ल को औपचारिक मान्यता मिली है।


डॉ. एससी मेहता के नेतृत्व में शोध

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ. एससी मेहता के नेतृत्व में किए गए गहन शोध के परिणामस्वरूप भीमथड़ी घोड़े को भारतीय घोड़ों की आठवीं नस्ल के रूप में मान्यता मिली।

डॉ. मेहता ने बताया,
“भीमथड़ी घोड़ा, जिसे डक्कनी घोड़ा भी कहते हैं, 17वीं सदी में छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में अहम भूमिका निभाता था। इसके सहारे उन्होंने कई युद्धों में विजय प्राप्त की।”

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घोड़े की स्थिति और संरक्षण प्रयास

संयुक्त राष्ट्र संघ (FAO) की रिपोर्ट के अनुसार, डक्कनी घोड़ों की कुल संख्या केवल 100 है। 30-40 वर्षों से इस नस्ल को लुप्तप्राय घोड़ों में शामिल किया गया था।

अब इस नस्ल के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयास शुरू किए गए हैं। ‘आल इंडिया भीमथड़ी हॉर्स एसोसिएशन’ का गठन रणजीत पंवार की अध्यक्षता में किया गया है।


सम्मान और आयोजन

इस उपलब्धि के लिए डॉ. एससी मेहता और रणजीत पंवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा सम्मानित किया गया।

नस्ल का पहला आधिकारिक शो 21 जनवरी, बारामती, पुणे में आयोजित किया जाएगा।


भीमथड़ी घोड़े की मान्यता से लाभ

  • नस्ल को पालने वालों के अधिकार सुनिश्चित हुए।
  • संरक्षण और संवर्धन के लिए संस्थागत कार्य की शुरुआत।
  • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयास।

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editor January 19, 2025
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