ढाका/मयमनसिंह: बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। एक बार फिर दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां एक हिंदू युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह वारदात मयमनसिंह जिले की एक कपड़ा फैक्ट्री में हुई, जिसने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मृतक की पहचान बजेंद्र बिसवास के रूप में हुई है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सोमवार शाम करीब 6:30 बजे फैक्ट्री परिसर में बने बैरक के अंदर यह घटना हुई। आरोपी नोमन मियां और बजेंद्र बिसवास दोनों उसी फैक्ट्री में तैनात थे।
बैरक के भीतर चली गोली, अस्पताल में तोड़ा दम
बताया जा रहा है कि दोनों के बीच किसी बात को लेकर बातचीत हो रही थी। इसी दौरान आरोपी नोमन मियां ने अचानक हथियार निकाल लिया और गोली मारने की धमकी दी। कुछ ही पलों बाद उसने फायरिंग कर दी। गोली बजेंद्र बिसवास की बाईं जांघ में लगी, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया।
घटना के तुरंत बाद घायल युवक को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी मौके से फरार हो गया था।
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पुलिस ने आरोपी को दबोचा
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस हरकत में आई और त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी नोमन मियां को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस का कहना है कि मामले की जांच जारी है और हत्या के पीछे की असली वजह जानने की कोशिश की जा रही है।
एक के बाद एक हिंदुओं की हत्या से बढ़ा आक्रोश
गौरतलब है कि मयमनसिंह जिला पहले भी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को लेकर चर्चा में रहा है। कुछ दिन पहले इसी जिले में दीपू चंद्र दास की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। आरोप है कि हत्या के बाद शव को पेड़ से बांधकर सार्वजनिक स्थान पर आग लगा दी गई थी, जिससे पूरे इलाके में दहशत फैल गई थी।
दीपू के बाद अमृत मंडल की मौत
दीपू चंद्र दास की हत्या के बाद अमृत मंडल की मौत ने हालात को और गंभीर बना दिया। अमृत मंडल को भी भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। हालांकि उस मामले में यूनुस सरकार की ओर से बयान जारी कर कहा गया था कि यह सांप्रदायिक हिंसा नहीं, बल्कि कथित उगाही से परेशान लोगों की प्रतिक्रिया थी।
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर सवाल
लगातार हो रही इन घटनाओं ने बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें भी अब इन घटनाओं पर टिकी हैं। सवाल यह है कि आखिर कब तक अल्पसंख्यक इस तरह हिंसा का शिकार होते रहेंगे और क्या उन्हें पर्याप्त सुरक्षा मिल पाएगी।

