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देश-दुनिया

BRICS देशों का बढ़ता स्वर्ण प्रभुत्व: क्या डॉलर की वैश्विक पकड़ कमजोर हो रही है?

editor
editor Published December 29, 2025
Last updated: 2025/12/29 at 10:36 AM
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BRICS Gold Reserves: बदलती वैश्विक आर्थिक तस्वीर

अमेरिकी डॉलर पिछले कई दशकों से दुनिया की सबसे ताकतवर वैश्विक करेंसी रहा है। इसकी नींव 1944 के ब्रेटन वुड्स समझौते में पड़ी थी, जब दूसरे विश्व युद्ध के बाद 44 देशों ने डॉलर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मुख्य मुद्रा के रूप में स्वीकार किया। उस समय अमेरिका ने यह भरोसा दिलाया था कि डॉलर को कभी भी सोने में बदला जा सकता है। इसी भरोसे ने डॉलर को वैश्विक वित्तीय व्यवस्था का केंद्र बना दिया।

Contents
BRICS Gold Reserves: बदलती वैश्विक आर्थिक तस्वीरBRICS देशों की नई रणनीतिरूस और चीन की अग्रणी भूमिकासेंट्रल बैंकों की बढ़ती गोल्ड खरीदडॉलर पर निर्भरता क्यों घट रही है?पेट्रोडॉलर सिस्टम को चुनौतीक्या डॉलर की वैश्विक हैसियत खत्म हो जाएगी?

लेकिन समय के साथ हालात बदलने लगे। डॉलर की ताकत जहां अमेरिका को आर्थिक बढ़त देती रही, वहीं इसका इस्तेमाल कई बार राजनीतिक और आर्थिक दबाव के हथियार के रूप में भी हुआ। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जब रूस के विदेशी मुद्रा भंडार को फ्रीज किया गया, तब कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह एक चेतावनी बन गया।


BRICS देशों की नई रणनीति

ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का समूह BRICS अब अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता घटाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसका सबसे बड़ा संकेत है—सोने की आक्रामक खरीद और उत्पादन में बढ़ोतरी।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, BRICS देशों के पास सीधे तौर पर वैश्विक स्वर्ण भंडार का करीब 20 प्रतिशत हिस्सा है। लेकिन अगर इनके रणनीतिक साझेदार देशों को भी जोड़ा जाए, तो यह समूह दुनिया के कुल स्वर्ण उत्पादन के लगभग 50 प्रतिशत हिस्से पर प्रभाव रखता है। यह बदलाव वैश्विक वित्तीय संतुलन में एक बड़े शिफ्ट की ओर इशारा करता है।

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रूस और चीन की अग्रणी भूमिका

सोने की इस रणनीति में चीन और रूस सबसे आगे हैं।
• वर्ष 2024 में चीन ने लगभग 380 टन सोने का उत्पादन किया।
• रूस ने इसी अवधि में करीब 340 टन सोना निकाला।

वहीं ब्राजील ने सितंबर 2025 में 16 टन सोने की खरीद की, जो 2021 के बाद उसकी सबसे बड़ी खरीद मानी जा रही है। यह साफ संकेत है कि BRICS देश न केवल सोना पैदा कर रहे हैं, बल्कि उसे बेचने के बजाय अपने भंडार में जोड़ रहे हैं।


सेंट्रल बैंकों की बढ़ती गोल्ड खरीद

2020 से 2024 के बीच दुनिया में जितना भी सोना खरीदा गया, उसका 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा BRICS देशों के केंद्रीय बैंकों ने खरीदा। एक्सपर्ट्स इसे केवल निवेश नहीं, बल्कि रिस्क मैनेजमेंट और डॉलर-डिपेंडेंसी से बाहर निकलने की रणनीति मानते हैं।

सोना ऐसा एसेट है जिस पर किसी एक देश या राजनीतिक सिस्टम का नियंत्रण नहीं होता। यही वजह है कि मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल में इसे “पॉलिटिकली न्यूट्रल एसेट” माना जा रहा है।


डॉलर पर निर्भरता क्यों घट रही है?

BRICS देशों का वैश्विक व्यापार में हिस्सा अब करीब 30 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। बीते कुछ वर्षों में इन देशों के बीच स्थानीय मुद्राओं में व्यापार तेज़ी से बढ़ा है।
भारत-रूस, चीन-ब्राजील जैसे समझौते इसका उदाहरण हैं, जहां लेन-देन डॉलर के बजाय स्थानीय करेंसी में हो रहा है। इससे न केवल ट्रांजैक्शन कॉस्ट घटती है, बल्कि आर्थिक प्रतिबंधों का जोखिम भी कम होता है।


पेट्रोडॉलर सिस्टम को चुनौती

BRICS देशों की रणनीति केवल सोने तक सीमित नहीं है। चीन का इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और रिन्यूएबल एनर्जी पर जोर, और तेल आधारित डॉलर सिस्टम से धीरे-धीरे दूरी बनाना भी इसी सोच का हिस्सा है। इसका सीधा असर भविष्य में डॉलर-लिंक्ड कमोडिटी प्राइसिंग पर पड़ सकता है।


क्या डॉलर की वैश्विक हैसियत खत्म हो जाएगी?

विशेषज्ञ मानते हैं कि फिलहाल डॉलर दुनिया की प्रमुख रिजर्व करेंसी बना रहेगा। लेकिन यह भी सच है कि उसकी निर्विवाद सर्वोच्चता अब पहले जैसी नहीं रही। BRICS देशों का सोने पर बढ़ता फोकस यह संकेत देता है कि आने वाले वर्षों में वैश्विक वित्तीय व्यवस्था अधिक मल्टी-पोलर हो सकती है, जहां डॉलर अकेला विकल्प नहीं रहेगा।


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editor December 29, 2025
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