तमिलनाडु के सेलम जिले में स्थित एक अनोखे मंदिर ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है, जहां किसी पारंपरिक देवी-देवता नहीं बल्कि एक एलियन आकृति की पूजा की जाती है। मंदिर के पुजारी और संस्थापक लोगनाथन का दावा है कि यह एलियन कोई बाहरी जीव नहीं, बल्कि भगवान शिव द्वारा रचा गया पहला देवता है, जिसके पास दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने की क्षमता है।
एलियन मंदिर की स्थापना और निर्माण
मल्लमपट्टी के रामगौंडनूर निवासी लोगनाथन ने पिछले वर्ष इस मंदिर की स्थापना करवाई। उनका कहना है कि दो वर्ष पहले उन्हें सपने में एक दिव्य आकृति दिखाई दी, जिसे वे एलियन देवता मानते हैं। इसी अनुभव के आधार पर उन्होंने मंदिर बनाने का निर्णय लिया।
मंदिर भूमि के 11 फीट नीचे बना है और यहां काले रंग की एक विशेष मूर्ति स्थापित है, जिसकी लोगनाथन प्रतिदिन आराधना करते हैं। मंदिर का निर्माण कार्य अभी भी जारी है।
पुजारी का दावा: शिव द्वारा निर्मित पहला देवता
लोगनाथन का मानना है कि यह एलियन मूर्ति किसी दूसरे ग्रह के जीव की नहीं बल्कि भगवान शंकर की पहली सृष्टि का प्रतीक है। उनका कहना है कि इस देवता के पास अपार शक्तियां हैं और यह दुनिया को हर प्रकार की आपदाओं से सुरक्षित रख सकता है।
लोगनाथन का यह भी दावा है कि वे एलियंस से संवाद कर चुके हैं, जिन्होंने उन्हें बताया कि वे पृथ्वी की रक्षा करेंगे। हालांकि वे यह स्वीकार करते हैं कि कई लोग उनकी मान्यताओं को गंभीरता से नहीं लेते, लेकिन उन्हें भरोसा है कि समय के साथ लोग स्वयं इसकी सत्यता समझेंगे।
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मंदिर में अन्य देव प्रतिमाओं की स्थापना
एलियन देवता के अलावा मंदिर में विष्णु के वराह अवतार का दक्षिणी रूप, पंचमी वाराही और एक शिवलिंग की स्थापना भी प्रस्तावित है। शिवलिंग का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद उसे मंदिर के भूतल पर स्थापित किया जाएगा।
गुरु के मार्गदर्शन में बना मंदिर
लोगनाथन, जिन्होंने कभी होटल व्यवसाय चलाया था, ने 10वीं कक्षा तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त की है। होटल संचालन के दौरान उनकी मुलाकात सिद्ध भाग्य नामक व्यक्ति से हुई, जिन्होंने बाद में उनके आध्यात्मिक गुरु की भूमिका निभाई। गुरु के मार्गदर्शन में ही उन्होंने इस अनोखे मंदिर के निर्माण का निर्णय लिया।
स्थानीय लोगों में जिज्ञासा और चर्चा
भले ही मंदिर अभी निर्माणाधीन है, लेकिन इसकी अनोखी अवधारणा और एलियन पूजा की परंपरा से स्थानीय लोगों के बीच चर्चा तेज हो गई है। कई लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं, जबकि कुछ इसे आधुनिक युग के आध्यात्मिक प्रयोग के रूप में देखते हैं।
