राजस्थान के चर्चित आनंदपाल एनकाउंटर केस में पुलिस को बड़ी कानूनी जीत
राजस्थान के बहुचर्चित आनंदपाल सिंह एनकाउंटर केस में पुलिस को सात साल बाद बड़ी राहत मिली है। पुनरीक्षण न्यायालय ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें सात पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या का संज्ञान लिया गया था। अदालत ने कहा कि पुलिसकर्मी अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे और यह मुठभेड़ आत्मरक्षा में हुई थी।
अदालत के तर्क और मुख्य निष्कर्ष
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मृतक आनंदपाल ने एनकाउंटर के दौरान ऑटोमैटिक हथियार से फायरिंग की थी, जिससे पुलिस का एक जवान गंभीर रूप से घायल हुआ था। यह तथ्य सीबीआई की फॉरेंसिक रिपोर्ट से साबित हुआ कि आनंदपाल द्वारा चलाई गई गोली से कमांडो सोहन सिंह की रीढ़ की हड्डी में चोट लगी। कोर्ट ने माना कि मजिस्ट्रेट ने हत्या का संज्ञान लेते समय इस महत्वपूर्ण साक्ष्य की अनदेखी की थी।
अदालत ने यह भी कहा कि जब दोनों ओर से गोलियां चलीं, तो केवल पुलिस को आरोपी ठहराना न्यायसंगत नहीं है। यह एनकाउंटर कानूनन आत्मरक्षा की स्थिति में हुआ था।
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घटना की पृष्ठभूमि
यह मामला 24 जून 2017 का है, जब चूरू जिले के मालासर गांव में पुलिस ने राजस्थान के मोस्ट वांटेड गैंगस्टर आनंदपाल सिंह को घेर लिया था। पुलिस की स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) और RAC की टीम ने आनंदपाल को आत्मसमर्पण के लिए ललकारा, लेकिन उसने AK-47 से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें आनंदपाल मारा गया। इस दौरान कई पुलिसकर्मी घायल हुए।
परिवार का दावा और कोर्ट में विवाद
आनंदपाल के परिजनों ने इस मुठभेड़ को फर्जी एनकाउंटर बताया था। जुलाई 2024 में एसीजेएम कोर्ट ने सात पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या का संज्ञान लेते हुए केस चलाने के आदेश दिए थे। परिजनों का कहना था कि आनंदपाल को आत्मसमर्पण करने के बाद गोली मारी गई।
हालांकि, पुलिस की ओर से दाखिल पुनरीक्षण याचिका में वरिष्ठ अधिवक्ताओं विनीत जैन, राहुल चौधरी और उमेशकांत व्यास ने अदालत में यह तर्क दिया कि सीबीआई जांच और वैज्ञानिक साक्ष्य स्पष्ट रूप से बताते हैं कि आनंदपाल ने पहले फायरिंग की थी।
गवाहों के बयान और अदालत का नजरिया
पुलिस ने यह भी बताया कि आनंदपाल का भाई रुपींद्र पाल सिंह, जो मौके पर मौजूद था, ने प्रारंभिक जांच में खुद को चश्मदीद नहीं बताया था। मगर छह साल बाद उसने पुलिस पर झूठे आरोप लगाए, जिन्हें अदालत ने अविश्वसनीय माना। अदालत ने कहा कि किसी भी मामले में देर से दिए गए बयान और बिना सबूत के आरोप न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला
पुलिस की ओर से पेश वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि ड्यूटी के दौरान आत्मरक्षा में कार्रवाई करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ बिना ठोस सबूत के हत्या का केस दर्ज करना उनके मनोबल को कमजोर करता है। अदालत ने इस तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में न्यायिक सतर्कता आवश्यक है।
आगे की कानूनी स्थिति
इस फैसले के बाद राजस्थान पुलिस को बड़ी राहत मिली है, जबकि आनंदपाल के परिवार ने अब राजस्थान हाई कोर्ट में अपील करने की घोषणा की है।
