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देश-दुनिया

क्या नेहरू ने वंदे मातरम् से हटवाई थी मां दुर्गा की स्तुति? कांग्रेस-भाजपा में जुबानी जंग

editor
editor Published November 7, 2025
Last updated: 2025/11/07 at 2:49 PM
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वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे, ऐतिहासिक गीत पर छिड़ी नई राजनीतिक बहस

नई दिल्ली — राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर जहां देशभर में उत्सव और गौरव का माहौल है, वहीं इस मौके पर एक बार फिर सियासत गर्मा गई है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निर्देश पर वंदे मातरम् के मूल संस्करण से मां दुर्गा की स्तुति करने वाले छंद जानबूझकर हटा दिए गए थे।

Contents
वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे, ऐतिहासिक गीत पर छिड़ी नई राजनीतिक बहसकांग्रेस का पलटवार : “वंदे मातरम् हमारी पहचान और गौरव का प्रतीक”गांधी और नेहरू के ऐतिहासिक विचारों का हवालाआरएसएस पर कांग्रेस का निशानाभाजपा का पलटवार : “कांग्रेस ने वंदे मातरम् को विकृत किया”150 वर्षों का गौरव और बढ़ता विवाद

भाजपा प्रवक्ता सी.आर. केसवन ने कहा कि 1937 के फैजपुर अधिवेशन के दौरान कांग्रेस ने गीत का केवल संक्षिप्त संस्करण अपनाया और देवी दुर्गा की स्तुति वाले अंशों को हटाकर इसे “धर्मनिरपेक्ष रूप” दिया। उन्होंने इसे “ऐतिहासिक भूल” करार देते हुए दावा किया कि नेहरू ने सुभाषचंद्र बोस को लिखे एक पत्र में कहा था कि वंदे मातरम् का देवी से कोई लेना-देना नहीं है और यह गीत राष्ट्रगीत के लिए अनुपयुक्त है।


कांग्रेस का पलटवार : “वंदे मातरम् हमारी पहचान और गौरव का प्रतीक”

भाजपा के इस आरोप पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तीखा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा रहा है और कांग्रेस ने सदैव इसे सम्मान दिया है। खरगे ने लिखा,
“1905 के बंगाल विभाजन से लेकर आज़ादी तक, वंदे मातरम् हमारे वीर क्रांतिकारियों की जुबान पर गूंजता रहा। अंग्रेज इस गीत से डरते थे, क्योंकि यह उनके साम्राज्यवाद के खिलाफ सबसे बड़ा नारा बन चुका था।”

खरगे ने आगे कहा कि भाजपा और आरएसएस को राष्ट्रवाद की परिभाषा सिखाने की जरूरत नहीं है।
“विडंबना यह है कि जो लोग आज वंदे मातरम् की दुहाई दे रहे हैं, उन्होंने न अपनी शाखाओं में यह गीत गाया, न ही कभी राष्ट्रीय ध्वज फहराया।”

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गांधी और नेहरू के ऐतिहासिक विचारों का हवाला

कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों को नकारते हुए कहा कि महात्मा गांधी और पंडित नेहरू दोनों ने ही वंदे मातरम् को भारतीय राष्ट्रवाद का प्रतीक बताया था।
खरगे ने गांधीजी के 1915 के लेख का हवाला देते हुए कहा,
“मुझे बचपन में न आनंदमठ की जानकारी थी, न बंकिमचंद्र की, लेकिन वंदे मातरम् ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। यह गीत मेरी शुद्धतम राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बन गया।”

नेहरू ने 1938 में लिखा था कि “वंदे मातरम् बीते तीन दशकों से भारतीय राष्ट्रवाद की आवाज़ रहा है, इसे किसी पर थोपा नहीं गया बल्कि यह स्वतः जनमानस का गीत बन गया।”
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 1937 में मौलाना आजाद, रवींद्रनाथ टैगोर, सुभाषचंद्र बोस और आचार्य नरेंद्र देव के नेतृत्व में कांग्रेस ने औपचारिक रूप से वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत घोषित किया था।


आरएसएस पर कांग्रेस का निशाना

कांग्रेस ने भाजपा और आरएसएस पर पलटवार करते हुए कहा कि राष्ट्रगीत पर बयान देने से पहले उन्हें अपना इतिहास देखना चाहिए। खरगे ने कहा,
“आरएसएस ने आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों का साथ दिया, 52 साल तक तिरंगा नहीं फहराया और कभी वंदे मातरम् या जन गण मन नहीं गाया। वे आज राष्ट्रवाद की आड़ में केवल विभाजनकारी राजनीति कर रहे हैं।”


भाजपा का पलटवार : “कांग्रेस ने वंदे मातरम् को विकृत किया”

भाजपा प्रवक्ता सी.आर. केसवन ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि नेहरू के नेतृत्व में वंदे मातरम् के मूल स्वरूप को बदला गया, ताकि पार्टी का “सांप्रदायिक एजेंडा” आगे बढ़ सके।
उन्होंने कहा कि “नेहरू ने खुद लिखा था कि वंदे मातरम् को देवी दुर्गा से जोड़ना मुस्लिम समुदाय को आहत कर सकता है, इसलिए इसे संशोधित करना आवश्यक था।”
भाजपा के अनुसार, यह निर्णय भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं से दूरी बनाने की कांग्रेस मानसिकता को दर्शाता है।


150 वर्षों का गौरव और बढ़ता विवाद

बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा रचित वंदे मातरम् पहली बार 7 नवंबर 1875 को बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित हुआ था और बाद में 1882 में उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया। रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीतबद्ध किया, और यह धीरे-धीरे स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया।

अब जब वंदे मातरम् अपने 150 वर्ष पूरे कर रहा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्षभर चलने वाले विशेष कार्यक्रमों की घोषणा की है।
हालांकि, इस अवसर पर फिर से राजनीति तेज हो गई है — राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में स्कूलों में राष्ट्रगीत के अनिवार्य पाठ को लेकर विवाद छिड़ गया है।



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editor November 7, 2025
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