भारत के स्वर्ण भंडार में लगातार इजाफा, कुल भंडार 880 टन तक पहुंचा
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश के स्वर्ण भंडार में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। 3 अक्टूबर 2024 को समाप्त सप्ताह में भारत के स्वर्ण भंडार में 3.753 अरब डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस तेजी के साथ देश का कुल स्वर्ण भंडार अब 98.770 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। अगर टन में बात करें, तो भारत के पास अब लगभग 880 टन सोना मौजूद है, जो कि देश के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का करीब 14 प्रतिशत है।
विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार तीसरे सप्ताह गिरावट
हालांकि, स्वर्ण भंडार में बढ़ोतरी के बीच भारत के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट जारी है। 3 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में कुल फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व में 276 मिलियन डॉलर की कमी दर्ज की गई, जिससे कुल भंडार घटकर 699.960 अरब डॉलर रह गया। इससे पहले के सप्ताह में इसमें 2.33 अरब डॉलर की गिरावट आई थी। गौरतलब है कि 27 सितंबर 2024 को यह भंडार अपने उच्चतम स्तर 704.885 अरब डॉलर पर था।
फॉरेन करेंसी एसेट में सबसे बड़ी गिरावट
विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का सबसे बड़ा कारण फॉरेन करेंसी एसेट (FCA) में आई गिरावट है। FCA में 4.04 अरब डॉलर की भारी गिरावट हुई, जिससे इसका कुल मूल्य 577.70 अरब डॉलर तक सिमट गया है। FCA में अमेरिकी डॉलर के अलावा यूरो, जापानी येन और पाउंड जैसी अन्य विदेशी मुद्राओं के मूल्य उतार-चढ़ाव का भी प्रभाव होता है।
SDR और IMF रिजर्व में भी हलचल
3 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में एसडीआर (Special Drawing Rights) में 25 मिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हुई, जिससे इसका मूल्य 18.814 अरब डॉलर हो गया। इसके विपरीत, IMF में जमा भारत के रिजर्व पोजीशन में 4 मिलियन डॉलर की कमी दर्ज की गई है और यह घटकर 4.669 अरब डॉलर पर आ गया है।
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वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप RBI की गोल्ड खरीद
दुनिया भर के केंद्रीय बैंक वर्तमान में बड़े पैमाने पर सोने की खरीद कर रहे हैं। इस वैश्विक प्रवृत्ति के तहत RBI भी वर्ष 2024 में अब तक करीब 75 टन सोना खरीद चुका है। यह कदम भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक अस्थिरताओं से बचाने और मुद्रा भंडार को विविध बनाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
निष्कर्ष:
एक ओर जहां भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट देखी जा रही है, वहीं दूसरी ओर स्वर्ण भंडार में वृद्धि देश की वित्तीय स्थिरता को मजबूत संकेत देती है। यह आरबीआई की रणनीतिक नीति का हिस्सा है, जो वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच एक मजबूत बैकअप सुनिश्चित करता है।