कफ सिरप विवाद: चिकित्सकीय परामर्श अनिवार्य, विभाग ने एडवाइजरी जारी की
राजस्थान सरकार ने राज्य में डेक्स्ट्रोमेथोर्फन (Dextromethorphan HBr) युक्त कफ सिरप को लेकर बड़ी सावधानी बरतने का फैसला किया है। दो बच्चों की मृत्यु तथा अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की रिपोर्टों के बाद चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने यह निर्णय लिया कि अब यह सिरप केवल चिकित्सकीय पर्चे (प्रिसक्रिप्शन) पर ही दिया जाएगा। इस संबंध में एक विस्तृत एडवाइजरी भी जारी की गई है।
मौत और जांच की पृष्ठभूमि
भरतपुर और सीकर जिलों में दो बच्चों की मौत की घटनाएँ सामने आई हैं, जिन्हें प्रारंभिक रिपोर्टों में डेक्स्ट्रोमेथोर्फन सिरप के सेवन से जोड़कर देखा गया है। हालांकि विभाग ने स्पष्ट किया है कि दोनों मामलों में चिकित्सक ने इस सिरप को नहीं लिखा था, अर्थात् मौतें सीधे दवा से जुड़ी पर्चे पर लिखे जाने से सिद्ध नहीं होती।
विशेष रूप से, सीकर जिले के हाथीदेह PHC में एक मामले पर कार्रवाई करते हुए एक चिकित्सक और फार्मासिस्ट को निलंबित किया गया है।
साथ ही, एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गई है और संदिग्ध सिरप के नमूने औषधि परीक्षण प्रयोगशाला भेजे गए हैं। वितरित करने वाली कंपनी Kaysons Pharma की 19 दवाओं पर आपूर्ति रोक दी गई है।
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एडवाइजरी में क्या शामिल है?
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सभी चिकित्सकों को दवा लिखते समय प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करना होगा
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बिना चिकित्सकीय सलाह के रोगी दवा न लें
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बच्चों को दवाएँ देते समय विशेष सतर्कता बरती जाए
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कफ-सर्दी की सामान्य दवाओं का उपयोग सोच-समझ कर करें
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शिकायत या इमरजेंसी के लिए राज्य स्तरीय कंट्रोल रूम (0141–2225624) को संपर्क करने का निर्देश
सरकारी कार्रवाई और प्रतिबंध
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राजस्थान सरकार ने Kaysons Pharma की सभी 19 दवाओं के वितरण पर तत्काल रोक लगाई है।
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राजस्थान ड्रग कंट्रोलर राजाराम शर्मा को निलंबित किया गया है।
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डेक्स्ट्रोमेथोर्फन युक्त सभी कफ सिरप का सामान्य वितरण भी रोका गया है।
विरोधाभासी रिपोर्टें: गुणवत्ता परीक्षण और दुष्प्रभाव
एक सरकारी जांच रिपोर्ट में यह कहा गया है कि कफ सिरप नमूनों में कोई विषाक्त मिलावट नहीं पाई गई, विशेष रूप से Diethylene Glycol (DEG) और Ethylene Glycol (EG) की मात्रा मान्य सीमा से ऊपर नहीं थी।
दूसरी ओर, प्रभावित इलाकों में रिपोर्ट्स में उल्टी, उनींदापन, चक्कर आना, बेचैनी जैसे लक्षण भी देखे गए हैं, जो दुष्प्रभाव का प्रमाण हो सकते हैं।
इस विरोधाभासी छवि ने मीडिया और जनता में चिंता बढ़ा दी है कि मामला सिर्फ नाममात्र प्रतिबंध या जांच तक सीमित न रह जाए, बल्कि औषधि नियंत्रण व्यवस्था की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा हो गया है।


