राजस्थान विश्वविद्यालय: महिला छात्राओं ने की टॉयलेट सफाई, प्रशासनिक लापरवाही पर उठे सवाल
राजस्थान विश्वविद्यालय को हाल ही में नैक ग्रेड सर्टिफिकेट से सम्मानित किया गया है, लेकिन विश्वविद्यालय की जमीनी स्थिति इस मान्यता के बिल्कुल विपरीत नजर आ रही है। खासतौर पर महिला हॉस्टलों की हालत बेहद चिंताजनक है। विश्वविद्यालय परिसर स्थित सरस्वती हॉस्टल में सफाई व्यवस्था ठप होने के कारण छात्राओं को खुद ही टॉयलेट और बाथरूम की सफाई करनी पड़ी।
सप्ताहभर से नहीं हुई सफाई, प्रशासन बेपरवाह
सूत्रों के अनुसार, सरस्वती हॉस्टल में पिछले सात दिनों से सफाई नहीं की गई थी। छात्राओं ने पहले वार्डन और फिर चीफ वार्डन से इसकी शिकायत की, लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई। लगातार अनदेखी से परेशान होकर छात्राओं ने खुद सफाई करने का निर्णय लिया, जिससे उनमें गहरा आक्रोश और अपमान की भावना देखी गई।
15 अगस्त के कार्यक्रम का बहिष्कार
प्रशासन की निष्क्रियता से नाराज छात्राओं ने 15 अगस्त को आयोजित विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता दिवस समारोह का बहिष्कार किया। उन्होंने कहा कि जब बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल रहीं, तो ऐसे आयोजनों में भाग लेना व्यर्थ है।
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‘बेटी पढ़ाओ’ की जमीनी हकीकत
राज्य सरकार “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियानों को बढ़ावा दे रही है, लेकिन विश्वविद्यालय परिसर की यह घटना उन दावों को सीधी चुनौती देती है। छात्राओं का कहना है कि शैक्षणिक माहौल के बजाय वे अव्यवस्था और उपेक्षा का सामना कर रही हैं।
सफाई के नाम पर कागजी खानापूर्ति, अधिकारी को सम्मान
हैरानी की बात यह है कि खराब व्यवस्थाओं के बीच विश्वविद्यालय के डिप्टी रजिस्ट्रार अरविंद कुमार शर्मा को 15 अगस्त को “उत्कृष्ट कार्य” के लिए कुलपति और कुलसचिव ने सम्मानित किया। छात्राओं ने इस फैसले पर भी सवाल उठाए हैं और आरोप लगाया है कि यह पुरस्कार केवल कुलपति कार्यालय के आसपास की नियमित सफाई के आधार पर दिया गया, जबकि बाकी परिसर की स्थिति बदहाल बनी हुई है।
समाधान अब भी अधूरा
छात्राओं की ओर से अब तक की गई सभी शिकायतों के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई स्थायी समाधान नहीं दिया है। यह मामला न केवल संस्थान की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि छात्रों के अधिकारों और सम्मान के प्रति उपेक्षा की ओर भी इशारा करता है।
निष्कर्ष:
राजस्थान विश्वविद्यालय की यह घटना शिक्षा संस्थानों में मूलभूत सुविधाओं की अनदेखी और प्रशासनिक जवाबदेही की कमी को उजागर करती है। यदि शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह मामला और अधिक गंभीर बन सकता है।