बिहार में मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया (SIR) को लेकर विवाद जारी है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि हाल ही में 65 लाख वोटरों के नाम सूची से हटाए गए हैं, उनकी पूरी सूची सार्वजनिक की जाए। इस पर चुनाव आयोग (EC) ने अपना पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है और ADR की मांग का विरोध किया है।
चुनाव आयोग ने अपने जवाब में कहा कि कानून या दिशानिर्देशों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत मसौदा मतदाता सूची में शामिल न किए गए लोगों के नामों की अलग सूची तैयार या साझा की जाए, या उनके नाम न शामिल करने के कारण प्रकाशित किए जाएं। आयोग ने स्पष्ट किया कि ऐसे नामों की सूची देने का कोई कानूनी या व्यावहारिक उद्देश्य नहीं है।
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ईसी ने यह भी कहा कि कोई भी पात्र मतदाता जिसका नाम मसौदा सूची में नहीं है, वह 1 अगस्त से 1 सितंबर के बीच दावा और आपत्ति अवधि में फॉर्म-6 भरकर अपना नाम शामिल कराने का अनुरोध कर सकता है। आयोग के अनुसार, यह प्रक्रिया इस बात का संकेत देती है कि आवेदक न तो मृत है, न स्थायी रूप से स्थानांतरित हुआ है और न ही लापता है।
चुनाव आयोग ने ADR के इस तर्क को “गलत, भ्रामक और अस्थिर” बताया कि बिना कारण बताए नाम हटाए जाने से प्रभावित व्यक्ति उचित कदम नहीं उठा पाएंगे।