



भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के PSLV-C61 मिशन को तकनीकी कारणों से सफलता नहीं मिली। इस मिशन का उद्देश्य उन्नत पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-09 को सूर्य समकालिक ध्रुवीय कक्षा में स्थापित करना था, लेकिन तीसरे चरण में प्रेशर कम होने की वजह से सैटेलाइट अपनी निर्धारित कक्षा में नहीं पहुंच पाया। इसरो जल्द ही इस घटना की जांच पूरी कर एक तकनीकी रिपोर्ट जारी करेगा।
पीएसएलवी-C61 रॉकेट को आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था। यह इसरो के पीएसएलवी रॉकेट का 63वां मिशन था और एक्सएल कॉन्फिगरेशन में 27वां था। शुरूआती दो चरण सही ढंग से कार्य किए, लेकिन तीसरे चरण के ठोस ईंधन के मोटर में दबाव गिरने से समस्या आई।
EOS-09 उपग्रह का वजन लगभग 1,696.24 किलोग्राम है और यह कृषि, वानिकी, आपदा प्रबंधन, शहरी नियोजन व राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। इस उपग्रह की मिशन अवधि पाँच वर्ष थी। इसके अलावा, इसे प्रभावी मिशन अवधि के बाद कक्षा से बाहर निकालने के लिए पर्याप्त ईंधन भी रखा गया था।
इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने बताया कि तीसरे चरण के ठोस ईंधन मोटर ने काम किया, लेकिन प्रेशर कम होने से मिशन पूरा नहीं हो पाया। इसरो ने एक फेल्योर एनालिसिस कमेटी गठित की है, जो पूरी उड़ान के आंकड़ों की जांच करेगी और भविष्य में ऐसी तकनीकी खामियों से बचने के उपाय सुझाएगी।
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पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) एक चार-चरणीय रॉकेट होता है, जिसमें पहला और तीसरा चरण ठोस ईंधन से चलते हैं, जबकि दूसरा और चौथा चरण तरल ईंधन से संचालित होते हैं। तीसरा चरण सैटेलाइट को सही कक्षा में पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण होता है, और इसी चरण में आई खराबी से यह मिशन असफल हुआ।
हालांकि, पीएसएलवी रॉकेट की विश्वसनीयता बहुत अधिक मानी जाती है। 1993 में इसके पहले मिशन में प्रोग्रामिंग गलती के कारण असफलता हुई थी, और 2017 में एक मिशन में सैटेलाइट के कवच के खुलने में समस्या आई थी। फिर भी, अब तक इसरो के PSLV रॉकेट ने 60 से अधिक सफल उड़ानें भरी हैं और विभिन्न देशों के सैटेलाइट अंतरिक्ष में पहुंचाए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि एक या दो असफलताओं से PSLV की साख प्रभावित नहीं होगी।