


जातिगत जनगणना पर RSS का संतुलित रुख, कहा— न बने राजनीतिक हथियार
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने जातिगत जनगणना को लेकर एक संतुलित और विचारपूर्ण रुख अपनाते हुए कहा है कि इसका इस्तेमाल “राजनीतिक हथियार” के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।
सूत्रों के अनुसार, संघ ने केंद्र सरकार के दशकीय जनगणना के साथ-साथ जाति आधारित गणना के निर्णय पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन संगठन ने इस मुद्दे पर सतर्कता और संवेदनशीलता व्यक्त की है।
RSS का मानना है कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्गों के लिए क्रीमी लेयर और उप-वर्गीकरण जैसे प्रस्तावों को लागू करने से पहले सभी हितधारकों से परामर्श करना आवश्यक है।
- Advertisement -
यह निर्णय ऐसे समय आया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और RSS प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात हुई थी, जिसे संघ की सहमति का संकेत माना जा रहा है।
RSS लंबे समय से अपने ‘सामाजिक समरसता’ अभियान के तहत जातीय भेदभाव को खत्म कर समाज को एकजुट करने की दिशा में कार्य कर रहा है।
संगठन ने कहा है कि जातिगत जनगणना जैसे संवेदनशील विषय को राजनीतिक एजेंडे के तहत नहीं बल्कि सामाजिक कल्याण की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।

पिछले साल केरल में RSS के मुख्य प्रवक्ता सुनील अंबेकर ने स्पष्ट किया था कि संघ को जाति आधारित डेटा संग्रह से आपत्ति नहीं है, बशर्ते इसका उद्देश्य पिछड़े वर्गों और ज़रूरतमंद समुदायों का कल्याण हो।
उन्होंने यह भी कहा कि यह डेटा पहले भी एकत्र किया जाता रहा है, लेकिन उसका उपयोग समाज के उत्थान के लिए होना चाहिए, न कि चुनावी रणनीतियों के लिए।
RSS के इस बयान को केंद्र सरकार के लिए एक वैचारिक समर्थन के रूप में देखा जा रहा है, जिससे जातिगत जनगणना की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
बिहार जैसे राज्यों में पहले से शुरू हो चुकी जातिगत गणनाओं और RSS के राष्ट्रीय स्तर पर मिले समर्थन से अब यह प्रक्रिया सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक नीतियों को पुनर्परिभाषित करने की दिशा में बढ़ रही है।
भारत जैसे देश, जो अभी भी सामाजिक न्याय, समान प्रतिनिधित्व और आर्थिक असमानता की चुनौतियों से जूझ रहा है, के लिए यह जनगणना विश्वसनीय आंकड़ों की एक ठोस नींव प्रदान कर सकती है।
अगर इसे संवेदनशीलता और व्यापक सहमति के साथ लागू किया जाए, तो यह कदम सामाजिक समरसता और समावेशी विकास के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ बन सकता है।