


दिल्ली। आज अनंत चतुर्दशी है। 10 दिन तक गणेशजी की पूजा के बाद आज मूर्तियां विसर्जित होंगी। वैसे तो ग्रंथों में गणेशजी की मूर्ति के विसर्जन का कोई जिक्र नहीं मिलता, लेकिन परंपराओं के चलते ऐसा होता है।
वेदव्यास और गणेश जी के महाभारत लिखने वाली कथा से ये परंपरा शुरू हुई है। जिसमें महाभारत लिखते हुए गणेशजी के शरीर में गर्मी बढ़ गई थी तो व्यास जी ने उन्हें नहलाया। तब से माना जाता है कि गणपति स्थापना के बाद विसर्जन करना चाहिए।
आज गणपति विसर्जन के 4 मुहर्त हैं। इनमें आप अपनी सुविधा के मुताबिक गणपति विसर्जित कर सकते हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखें की ये काम सूर्यास्त के पहले ही कर लें। ग्रंथों के हिसाब से सूरज डूबने के बाद मूर्तियों का विसर्जन नहीं करते। गणपति को विदा करने की विधि और मुहूर्त के बारे में हमने देश के जाने-माने ज्योतिषियों और धर्म ग्रंथों के जानकारों से पता किया… जानते हैं उनका क्या कहना है?
विसर्जन के बाद पौधा लगाएं क्योंकि शुभ मुहूर्त है
इस दिन घनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र होने से पेड़-पौधे लगाने का भी मुहूर्त है। वराहमिहिर ने ग्रंथों में पेड़-पौधे लगाने के लिए कुछ खास नक्षत्रों का जिक्र किया है। उनमें से दो नक्षत्र 9 सितंबर को रहेंगे। इसलिए गणपति विसर्जन के बाद उसी मिट्टी में तुलसी, नीम, अशोक, आंवला या कोई भी पूजनीय पेड़-पौधा लगाना शुभ रहेगा।
पानी में ही विसर्जन क्यों किया जाता है,हते हैं कि जल पंच तत्वों में एक है। इसमें घुलकर प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति अपने मूल तत्व में मिल जाती है। पानी के जरीये ही भगवान गणेश का साकार रूप निराकार हो जाता है। ये परमात्मा के एकाकार होने का प्रतीक भी है। इसलिए पानी में विसर्जन करने का महत्व है।
इससे जुड़ी एक कथा के मुताबिक महर्षि वेदव्यास महाभारत लिखने के लिए अच्छा लेखक ढूंढ रहे थे। तब गणेशजी ने इसके लिए हामी भरी, लेकिन उन्होंने शर्त भी रखी कि जब तक महर्षि बिना रुके बोलेंगे वे भी लगातार लिखते रहेंगे। वेदव्यास ने गणेश चतुर्थी के दिन से महाभारत सुनानी शुरू की। गणेशजी लगातार 10 दिन तक कथा लिखते रहे। कथा पूरी होने तक लगातार लिखने से गणेशजी के शरीर का तापमान बढ़ गया था। महर्षि वेदव्यास ने उन्हें सरोवर में नहलाया। ये अनंत चर्तुदशी का दिन था। इसलिए मूर्ति विसर्जन की परंपरा शुरू हुई।
