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झारखंड सिपाही भर्ती: नौकरी की आस में जान गंवाने वाले अभ्यर्थियों के परिवारों का हाल

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editor Published September 21, 2024
Last updated: 2024/09/21 at 10:12 AM
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झारखंड के पलामू ज़िले के मेदनीनगर शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर बृद्धखैरा गांव के रहने वाले 25 वर्षीय दीपक कुमार पासवान तीन भाइयों में सबसे छोटे थे.

Contents
क्या दौड़ और लापरवाही की वजह से हुई थी मौत?अरुण कुमार के साथ क्या हुआ थाप्राइवेट अस्पताल में ले गए परिजनपूरे राज्य में 13 की हुई मौत

सपना था किसी तरह झारखंड में पुलिस की नौकरी हासिल करना. इसलिए झारखंड आबकारी विभाग में सिपाही की भर्ती की परीक्षा निकली तो उसमें अपनी किस्मत आजमाने के लिए पहुंचे.

पलामू के चियांकी हवाई अड्डे केंद्र पर 28 अगस्त को हुई शारीरिक दक्षता परीक्षा में शामिल होने के दौरान तबीयत ख़राब होने के बाद दीपक को सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया और फिर उनकी मौत हो गई. हालांकि, उनकी मौत की स्पष्ट वजह का अब तक पता नहीं चल पाया है.

राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी भर्ती की इस सारी प्रक्रिया को रिव्यू करने की बात कही थी. उन्होंने कहा था, “इक्साइज़ कांस्टेबल की भर्ती के दौरान हुई मौतें दुखद और ह्रदय विदारक हैं. ऐसी परिक्षाओं के लिए पिछली सरकार ने जो नियम बनाए थे हम तुरंत उनके रिव्यू का निर्देश दे रहे हैं.”

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लेकिन बीजेपी ने इन मौतों के लिए राज्य सरकार को ज़िम्मेदार बताया है. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि मरने वालों के परिवार वालों को कम से कम 50 लाख की सहायता राशि दी जानी चाहिए.

पलामू में 28 अगस्त को हुई शारीरिक दक्षता परीक्षा में मरने वाले दीपक के परिवार का आरोप है कि इस मौत के लिए बदइंतज़ामी और सिस्टम की लापरवाही ज़िम्मेदार है.

लेकिन झारखंड के पुलिस प्रमुख ने कहा है कि परीक्षा के दौरान दवाओं समेत सभी किस्म के इंतज़ाम किए गए थे.

दीपक के बड़े भाई दीनानाथ पासवान भी उनका हौसला बढ़ाने के लिए केंद्र पर मौजूद थे.

उन्होंने बताया, “जब सुबह पांच बजे शारीरिक दक्षता परीक्षा के लिए बुलाया गया तो दौड़ दस बजे कड़ी धूप और उमस भरी गर्मी में क्यों करवाई गई. इसलिए ज़िम्मेदार तो सिस्टम है, जिसके कारण मैंने अपना भाई खो दिया.”

दीनानाथ पासवान का दावा है कि परीक्षा केंद्र पर अभ्यर्थियों के लिए खाने-पीने से लेकर कोई चिकित्सकीय व्यवस्था नहीं थी.

लेकिन उनके इस आरोप पर झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता कहते हैं, “वहां पानी, ओरआरएस का घोल, दवाई, नर्स और डॉक्टर आदि का इंतज़ाम था.”

इस बीच शुक्रवार को परीक्षा के दौरान एक और अभ्यर्थी की मौत हुई है.

आबकारी विभाग में सिपाही भर्ती के लिए आज फिर से दौड़ हुई और इसमें भाग लेने वाले 28 वर्षीय विरंची राय की तबीयत बिगड़ने के बाद मौत हो गई.

विरंची राय गिरिडीह के रहने वाले थे. आज सुबह वह दौड़ में हिस्सा ले रहे थे लेकिन तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें प्रशासन की ओर से ही किसी तरह सदर अस्पताल पहुंचाया गया. हालांकि, यहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

सिविल सर्जन और एसपी से इस मामले पर अभी तक संपर्क नहीं हो पाया है.

लेकिन गिरिडीह के ज़िला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ.शिव प्रसाद शर्मा ने बताया, “सेंटर पर दौड़ते हुए वह निढाल होकर गिरे, उसके बाद यहां पहुंचते-पहुंचते उनकी मौत हो गई. वह सदर अस्पताल मृत अवस्था में पहुंचे.”

उन्होंने कहा कि ऐसी मौत अभ्यास में कमी के कारण होती है, क्योंकि अभ्यास की कमी के कारण दौड़ के दौरान उनका हार्ट और ब्रेन बॉडी के साथ एडजस्ट नहीं हो पाया, ऐसे में उनकी मौत हो गई.

डॉक्टर शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि विरंची राय का पोस्टमॉर्टम हो गया है लेकिन रिपोर्ट आने के बाद ही वह ज़्यादा जानकारी दे पाएंगे.

क्या दौड़ और लापरवाही की वजह से हुई थी मौत?

हालांकि अनुराग गुप्ता स्वीकार करते हैं, “एक घंटे में दस किलोमीटर की दौड़ निश्चित रूप से आसान नहीं है. लेकिन अगर कोई दौड़ने का अभ्यास करता है तो वो दौड़ सकता है.”

तो क्या दीपक पहली बार इतनी दूरी तक दौड़ रहे थे, उनके भाई इस सवाल के जवाब में कहते हैं, “मेरा भाई दौड़ने का अभ्यास प्रतिदिन करता था. लेकिन उस दिन एक घंटे में दस किलोमीटर की दौड़ चिलचिलाती धूप में करवाई गई.”

बेटे की मौत से आहत दीपक की मां सुबकते हुए याद करती हैं, “दीपक से जब मेरी आख़िरी बार बात हुई तो मैंने दीपक को समझाया कि हज़ारीबाग में दो मौत हो गई हैं. इसलिए दौड़ में भाग मत लो. लेकिन उसने कहा कि कुछ नहीं होगा. लेकिन वो हमें छोड़ कर चला गया.”

दीपक जल्दी से जल्दी नौकरी हासिल करके अपने परिवार की आर्थिक मदद करना चाहते थे. पिता दो साल पहले गुज़र चुके थे. ऐसे में परिवार की ज़िम्मेदारी बड़े भाई दीनानाथ पासवान पर आ गई थी.

दीनानाथ से छोटे और दीपक से बड़े भाई धीरज पासवान कहते हैं, “एंबुलेंस में ऑक्सीजन की सुविधा होती तो बीमार पड़ने वाले अभ्यर्थियों को लाभ होता. परीक्षा केंद्र पर चिकित्सकों समेत बेहतर सुविधा होती तो मेरा भाई आज ज़िंदा होता.”

लेकिन इन आरोपों को पलामू ज़िला के सिविल सर्जन डॉ अनिल सिंह ख़ारिज करते हैं. डॉ सिंह के अनुसार केंद्र में दवा, एंबुलेंस और चिकित्सा कर्मी आदि की कोई कमी नहीं थी. वो कहते हैं, “मैं वहां खुद दिन में एक बार स्थिति का जायज़ा लेने जाता था.”

डॉ. सिंह कहते हैं, “वहां एडवांस लाइफ़ स्पोर्ट यानी मोबाइल आईसीयू मौजूद थी. वहां एक-एक दिन में तीस लोग बीमार होकर जब गिर रहे थे, उनकी सेवा के लिए चालीस एम्बुलेंस का प्रबंध किया गया था. ताकि जब एक एंबुलेंस परीक्षा केंद्र से जवान को लेकर निकलती तो इधर से फ़ौरन दूसरी एंबुलेंस को भेज दिया जाता ताकि केंद्र पर एंबुलेंस की कमी न हो.”

अरुण कुमार के साथ क्या हुआ था

लेकिन पलामू से दूसरे मृतक अरुण कुमार की चचेरी बहन अंशु कुमारी सिविल सर्जन से असहमत हैं.

वो कहती हैं, परीक्षा केंद्र पर इतनी सुविधाएं तो होनी चाहिए कि जब वहां कोई अभ्यर्थी बीमार पड़े तो फ़ौरन एंबुलेंस में ऑक्सीजन दी जाए. उसको अस्पताल भेजने के साथ केंद्र से एलान कर वहां मौजूद परिजन को सूचित भी किया जाना चाहिए कि अभ्यर्थी अस्पताल में है.”

दरअसल, अरुण कुमार की बहन अंशु शारीरिक दक्षता परीक्षा में खुद भी भाग लेने अपने भाई के साथ 28 अगस्त की सुबह पांच बजे से पहले केंद्र पहुंच गई थीं. जहां दौड़ने के लिए उनका नंबर पहले आया.

अंशु अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं कि महिलाओं को चालीस मिनट में छह किलोमीटर दौड़ना था. लेकिन अधिक गर्मी के कारण अंतिम राउंड में वो भी असहज महसूस करने लगीं.

वो कहती हैं, “उसी समय भाई की रनिंग भी शुरू हो गई, नज़दीक आने पर वो मुझे से कहते हुए आगे बढ़े कि थोड़ी हिम्मत दिखाओ तुम क्वालिफ़ाई कर जाओगी. लेकिन मैं अंत तक दौड़ नहीं सकी और बाहर जाकर भाई का इंतज़ार करने लगी.”

दरअसल, पलामू केंद्र के पांच मृतकों में से दो युवक दीपक कुमार पासवान और अरुण कुमार पलामू ज़िला के ही रहने वाले थे. दोनों युवकों ने पलामू के चियांकी हवाई अड्डा केंद्र पर 28 अगस्त को हुई शारीरिक दक्षता परीक्षा में भाग लिया था. जहां अस्वस्थ होने के बाद दोनों युवकों को सदर अस्पताल में प्रशासन के द्वारा भर्ती करवाया गया था.

अंशु के अनुसार अरुण कुमार के अंतिम राउंड के बाद जब वो बाहर नहीं आए तो अंशु उनको ढूंढने लगीं. वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों से जानकारी मांगी, लेकिन किसी से अरुण के संबंध में जानकारी नहीं मिली.

उन्होंने बताया, “तलाश करने पर भाई के मित्र ने बताया कि दो एंबुलेंस केंद्र से सदर अस्पताल की तरफ निकली हैं. वहीं चलकर अरुण की तलाश करें.”

अंशु कुमारी के मुताबिक उनके भाई अरुण कुमार सदर अस्पताल के जनरल वॉर्ड में गंभीर अवस्था में भर्ती थे. अरुण की तरह दीपक को भी सदर अस्पताल के जनरल वॉर्ड में रखा गया था.

प्राइवेट अस्पताल में ले गए परिजन

अस्पताल की लचर व्यवस्था से आहत दोनों परिजनों ने 28 अगस्त की रात स्थानीय प्राइवेट अस्पताल एसएच हॉस्पिटल में दोनों युवकों को भर्ती कर दिया.

दीपक के बड़े भाई धीरज पासवान कहते हैं, “पलामू सदर अस्पताल में सीसीयू और आईसीयू मौजूद होने के बावजूद फंक्शनिंग नहीं है.”

आईसीयू और सीसीयू वर्किंग न होने की बात को स्वीकारते हुए स्थानीय सिविल सृजन अनिल सिंह कहते हैं, “सदर अस्पताल मेडिकल कॉलेज में परिवर्तित हो रहा है. इस कारण आईसीयू और सीसीयू बंद है. इन यूनिट को जल्द ही बहाल करने की प्रक्रिया चल रही है.”

अंशु कुमारी कहती हैं, “30 अगस्त की सुबह पांच बजे अरुण का ऑक्सीज़न लेवल गिरना शुरू हुआ और कुछ ही मिनटों के बाद उनकी मौत हो गई.”

जबकि बेहतर इलाज के लिए 30 अगस्त को धीरज पासवान ने अपने छोटे भाई दीपक पासवान को रांची के मेदांता अस्पताल में भर्ती किया, जहां दो सितंबर, 2024 में दीपक की मौत हो गई. धीरज पासवान बताते हैं कि डॉक्टरों ने बताया कि हीटस्ट्रोक के बाद कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था.

‘’बेटे ने एक छोटी सी नौकरी के लिए अपनी जान गंवा दी’’

पलामू के कऊअल गांव में अरुण के घर में दर्जनों लोग उसके 74 वर्षीय पिता गृजा राम का ग़म बांटने की कोशिशें कर रहे थे.

जवान बेटे की मौत के कारण उनकी बातों में जहां बेटे को खोने का ग़म साफ ज़ाहिर हो रहा था तो वहीं सरकार के प्रति गुस्सा भी था.

गृजा राम कहते हैं, “केंद्र पर व्यवस्थाएं देने की ज़िम्मेदारी सरकार की थी. लेकिन वहां कुव्यवस्था के कारण मेरे बेटे ने एक छोटी सी नौकरी के लिए अपनी जान गंवा दी. इसलिए सबसे ज़्यादा दोषी सरकार और डॉक्टर हैं.”

लेकिन अभ्यार्थियों की मौत को लेकर पलामू के ज़िला चिकित्सा अधिकारी अनिल सिंह कहते हैं, “सबसे पहली बात मौसम के कारण अभ्यर्थियों को डिहाइड्रेशन हुआ. एक संभावना ये भी बनती है कि वे शायद खाली पेट दौड़े. तीसरी बात अभ्यर्थियों को दौड़ने की आदत थी या नहीं.”

अभ्यर्थी अरुण कुमार का कऊअल गांव ज़िला हेडक्वार्टर से लगभग दो घंटे की दूरी पर है. जहां उनके घर में कहने के लिए आठ कमरे हैं, लेकिन मिट्टी के पांच कमरे अब इस्तेमाल के लायक नहीं हैं. बचे तीन पक्के कमरे व बरामदे में तेरह लोगों का परिवार रहता है.

गृजा राम के बड़े बेटे फॉरेस्ट गार्ड हैं जबकि दूसरा बेटा बेरोज़गार है. परिवार को अरुण कुमार से बहुत उम्मीदें थीं.

गृजा राम के अनुसार अरुण यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर न होने के कारण वो किसी छोटी नौकरी की तलाश में थे, ताकि अपनी शिक्षा के साथ परिवार का ख़र्च खुद उठा सकें.

दोनों परिवार को इस बात का भी दुख है कि इतनी बड़ी घटना के बाद ज़िला प्रशासन के अधिकारियों ने परिवार से बातचीत नहीं की.

दीपक की मां फुलेश्वरी देवी कहती हैं, “जब भी प्रशासन से बात होगी तो मैं दोनों बेटों के लिए नौकरी की मांग करूंगी. क्योंकि दीपक की मृत्यु नौकरी की परीक्षा देने के दौरान बीमार होने से हुई है.”

लेकिन झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता कहते हैं, “जॉब देने का ऐसा कोई प्रावधान नियमावली में नहीं है. जबकि मुआवज़े के लिए शायद विचार चल रहा है, लेकिन मुआवज़ा देने से पहले मौत का कारण जानना ज़रूरी है.”

अरुण और दीपक की मौत की वजह जानने के लिए पूछे गए सवाल पर पलामू ज़िला पुलिस अधिकारी रीष्मा रमेशन ने कहा, “फ़िलहाल हमारे पास पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं आई है इसलिए इस संबंध में हम कुछ नहीं कह सकते.”

पूरे राज्य में 13 की हुई मौत

झारखंड आबकारी सिपाही के 583 पदों पर नियुक्ति के लिए 5,13,832 आवेदन आए थे. जिसकी शारीरिक दक्षता परीक्षा 22 अगस्त से शुरू हुई थी.

पहले तीन दिन के अंदर ही कुछ अभ्यर्थियों की मौत से पूरे परीक्षा पर सवाल उठने शुरू हुए थे.

वैसे झारखंड में आबकारी पुलिस भर्ती में केवल दो आवेदकों की ही मौत नहीं हुई है. बल्कि पूरे राज्य में शुक्रवार का मामला मिलाकर 13 आवेदकों की मौत हुई.

22 अगस्त को शुरू हुई झारखंड आबकारी सिपाही प्रतियोगिता की अहर्ता के तहत अभ्यर्थियों को 60 मिनट में 10 किलोमीटर की दौड़ पूरी करनी थी.

लेकिन उमस भरी गर्मी में आयोजित इस शारीरिक दक्षता परीक्षा में भाग लेने वाले 12 अभ्यर्थियों की मौत हो गई. जबकि कई दर्जन छात्र बीमार होने के बाद अस्पतालों में भर्ती हुए.

12 आवेदकों की मौत के बारे में एडीजीपी आरके मलिक ने कहा, “मामले की समीक्षा के दौरान यह बात स्पष्ट हुई कि अभी तक जिन अभ्यर्थियों की मृत्यु हुई है, उनके मृत्यु का कारण स्पष्ट रूप से पता नहीं चल पाया है.”

अभ्यर्थियों की असामयिक मृत्यु के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दो सितंबर की शाम अगले तीन दिनों की परीक्षा पर रोक लगा दी. जिसके बाद नये नियम और नये समय के साथ एक लाख चौदह हज़ार अभ्यर्थियों के लिए छह केंद्रों पर 10 सितंबर से दोबारा बहाली प्रक्रिया शुरू हुई है जो 20 सितंबर को पूरी हो रही है.

इस बार सभी परीक्षण केंद्रों पर अब ऑक्सीमीटर और रक्तचाप मापने की मशीन उपलब्ध थीं. इस राउंड में किसी अभ्यर्थी के हताहत होने की ख़बर नहीं आई है.


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editor September 21, 2024
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