AI in Healthcare Risks: इलाज में मशीन, भरोसे में इंसान
कल्पना कीजिए, आप अस्पताल में भर्ती हैं और आपका इलाज एक डॉक्टर नहीं बल्कि कंप्यूटर सिस्टम या एआई सॉफ्टवेयर तय कर रहा है। सवाल यह है कि क्या ऐसी स्थिति में मरीज पूरी तरह सुरक्षित है? आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने मेडिकल दुनिया में तेजी से कदम बढ़ाए हैं, लेकिन इसके साथ गंभीर जोखिम भी सामने आ रहे हैं।
आज एआई एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआई पढ़ने से लेकर बीमारियों की पहचान तक में इस्तेमाल हो रहा है। कई मामलों में यह तकनीक डॉक्टरों की मदद कर रही है, लेकिन पूरी जिम्मेदारी मशीन पर छोड़ देना खतरनाक साबित हो सकता है।
98 फीसदी सटीक, लेकिन बाकी 2 फीसदी जानलेवा
मेडिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि एआई सिस्टम 90 से 98 फीसदी तक सही नतीजे दे सकते हैं। लेकिन इलाज के क्षेत्र में यह बचा हुआ छोटा सा प्रतिशत भी बेहद खतरनाक है।
अगर एआई किसी गंभीर बीमारी को पहचानने में चूक जाए या गलत डायग्नोसिस दे दे, तो मरीज के पास सुधार का मौका ही नहीं बचता।
यही वजह है कि एआई को लेकर भरोसे के साथ डर भी जुड़ा हुआ है।
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AI Misdiagnosis: गलती मशीन की, सजा किसे?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर एआई की वजह से मरीज की मौत हो जाए, तो जिम्मेदार कौन होगा?
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डॉक्टर, जिसने मशीन की रिपोर्ट पर भरोसा किया?
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अस्पताल, जिसने उस तकनीक को अपनाया?
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या सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी?
फिलहाल दुनिया के ज्यादातर देशों में इस सवाल का कोई साफ कानूनी जवाब नहीं है। अनुमान है कि 2030 तक मेडिकल एआई का बाजार करीब 187 अरब डॉलर का होगा, लेकिन जवाबदेही को लेकर नियम अब भी अधूरे हैं।
जब सॉफ्टवेयर की गलती बनी मौत की वजह
एआई और मेडिकल मशीनों की गलती कोई नई बात नहीं है। 1980 के दशक में ‘Therac-25’ नाम की रेडिएशन थेरेपी मशीन का मामला आज भी उदाहरण के तौर पर देखा जाता है।
सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी के कारण इस मशीन ने मरीजों को जरूरत से कई गुना ज्यादा रेडिएशन दे दिया। नतीजा यह हुआ कि कई मरीजों की मौत हो गई और कई जिंदगी भर की तकलीफ झेलने को मजबूर हुए।
बाद में कंपनी पर केस चला और भारी मुआवजा देना पड़ा। यह घटना साफ बताती है कि तकनीक पर बिना निगरानी भरोसा कितना खतरनाक हो सकता है।
आम बीमारी समझकर नजरअंदाज कर दिया गया स्ट्रोक
हाल ही में सामने आए एक मामले में 63 वर्षीय व्यक्ति ने डॉक्टर के पास जाने के बजाय एआई से अपने लक्षणों के बारे में पूछा। एआई ने इसे सामान्य समस्या बताया।
असल में वह मिनी स्ट्रोक का संकेत था। इलाज में देरी हुई और हालत गंभीर हो सकती थी। सौभाग्य से समय पर अस्पताल पहुंचने से जान बच गई।
यह मामला साबित करता है कि एआई या इंटरनेट डॉक्टर की जगह नहीं ले सकते।
डॉक्टरों और अस्पतालों को क्या सावधानी बरतनी चाहिए
मेडिकल क्षेत्र में एआई का इस्तेमाल पूरी तरह गलत नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ जरूरी सीमाएं तय करनी होंगी।
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एआई को सहायक मानें, निर्णायक नहीं
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अंतिम फैसला डॉक्टर अपने अनुभव से करें
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मरीज को बताना जरूरी हो कि इलाज में एआई का उपयोग हो रहा है
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हर रिपोर्ट का मानवीय स्तर पर क्रॉस चेक होना चाहिए
भविष्य की तस्वीर: सुविधा भी, खतरा भी
आने वाले वर्षों में एआई बीमारियों को जल्दी पहचानने में और बेहतर हो सकता है। लेकिन एआई के साथ एक बड़ी समस्या जुड़ी है, जिसे ‘ब्लैक बॉक्स’ कहा जाता है। कई बार मशीन कोई फैसला क्यों ले रही है, यह उसके निर्माता भी नहीं समझ पाते।
यही वजह है कि चाहे तकनीक कितनी भी उन्नत क्यों न हो जाए, डॉक्टर की समझ, अनुभव और मानवीय संवेदना की जगह कोई मशीन नहीं ले सकती।

