राजस्थान में अब मृत शरीर को लेकर होने वाले विरोध प्रदर्शनों और बिना वजह अंतिम संस्कार टालने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। राज्य सरकार ने ‘राजस्थान मृतक शरीर के सम्मान अधिनियम’ के नियम लागू कर दिए हैं, जिसके बाद डेड बॉडी के दुरुपयोग, सड़क रोककर प्रदर्शन और राजनीतिक उद्देश्यों से शव रखने जैसी गतिविधियों पर 1 से 5 साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान लागू हो गया है।
अब परिजन शव लेने से इनकार नहीं कर पाएंगे
नए नियमों के तहत परिजनों को हॉस्पिटल या पुलिस से डेड बॉडी लेना अनिवार्य होगा। अगर परिजन जानबूझकर विरोध, दबाव या किसी विवाद के कारण शव नहीं लेते हैं, तो उन्हें एक साल तक की सजा हो सकती है।
यदि परिवार का कोई सदस्य शव का इस्तेमाल प्रदर्शन के लिए करता है या किसी नेता को ऐसा करने देता है, तो दो साल तक की जेल हो सकती है।
नेताओं और बाहरी व्यक्तियों पर सबसे सख्त कार्रवाई
अगर कोई राजनीतिक कार्यकर्ता, नेता या गैर-परिजन मृत शरीर को लेकर प्रदर्शन करता है, तो उसे 5 साल तक की सजा का प्रावधान है।
कानून का उद्देश्य शव के सम्मान की रक्षा करना और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना बताया गया है।
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कानून पहले लागू, अब नियम बने
यह अधिनियम जुलाई 2023 में विधानसभा से पारित हुआ था और अगस्त 2023 में इसे लागू भी कर दिया गया था। लेकिन नियमों की अनुपस्थिति के कारण पुलिस कार्रवाई नहीं कर पा रही थी।
अब नियम अधिसूचित होने के बाद यह कानून पूरी तरह प्रभावी हो गया है।
लावारिस शवों के लिए भी कड़े प्रावधान
नियमों में लावारिस शवों की पहचान, सुरक्षा और डेटा प्रबंधन को लेकर भी सख्त निर्देश शामिल हैं।
मुख्य प्रावधान
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लावारिस शवों का पोस्टमॉर्टम वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के साथ होगा।
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सभी शवों का डीएनए प्रोफाइल तैयार किया जाएगा।
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राज्य स्तर पर और प्रत्येक जिले में डिजिटल डेटा बैंक बनाया जाएगा।
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महिला और पुरुष शवों को अलग-अलग डीप फ्रीजर में रखा जाएगा।
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गोपनीयता भंग करने पर 3 से 10 साल तक की जेल और जुर्माना लगाया जा सकेगा।
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हॉस्पिटल की लापरवाही या अभद्र स्थिति में शव रखने पर भी कार्रवाई होगी।
अंतिम संस्कार में देरी कब स्वीकार होगी
परिजन केवल दो परिस्थितियों में अंतिम संस्कार में देरी कर सकते हैं—
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परिवार के सदस्य दूर-दराज़ में हों और पहुंचने में समय लगे
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पोस्टमॉर्टम आवश्यक हो
इन कारणों के अलावा देरी गैर-कानूनी मानी जाएगी।
राजनीतिक विवाद भी फिर उभरा
विधेयक पारित होने के समय तत्कालीन विपक्ष ने इसका विरोध किया था।
तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने इसे “आवाज दबाने वाला कानून” बताते हुए कहा था कि सरकार विरोध प्रदर्शनों पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है।
अब मौजूदा सरकार ने बिना किसी संशोधन के इन्हीं नियमों को लागू कर दिया है, जिसके बाद राजनीतिक बहस एक बार फिर तेज हो गई है।


