सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगों की गरिमा की रक्षा के लिए सख्त कानून की जरूरत जताई
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि दिव्यांग लोगों की गरिमा की रक्षा के लिए ऐसा कानून बनाया जाए, जिसमें उनके अपमान या उपहास को एससी-एसटी कानून की तरह अपराध माना जाए। गुरुवार को चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की बेंच ने इस दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
बेंच का सवाल: एससी-एसटी जैसे कानून क्यों नहीं?
शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में जातिसूचक टिप्पणियों और अपमान को अपराध माना गया है। तो दिव्यांगों के अपमान और मजाक के लिए ऐसा कानून क्यों नहीं बनाया जा सकता? बेंच ने स्पष्ट किया कि अपमान करने पर सख्त सजा देने वाला कानून होना चाहिए।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर नियंत्रण हेतु स्वायत्त संस्था की आवश्यकता
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी की गरिमा का अपमान हास्य का माध्यम नहीं बन सकता। बेंच ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अश्लील, आपत्तिजनक या अवैध सामग्री को नियंत्रित करने के लिए एक तटस्थ, स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को सार्वजनिक चर्चा के लिए दिशानिर्देश जारी करने को कहा
दिव्यांग व्यक्तियों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियों को रोकने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कुछ दिशानिर्देश तैयार किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन दिशानिर्देशों को सार्वजनिक चर्चा के लिए उपलब्ध कराया जाए। मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी।
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SMA क्योर फाउंडेशन की याचिका और सोशल मीडिया विवाद
शीर्ष अदालत एसएमए क्योर फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह संस्था स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) से पीड़ित लोगों के लिए काम करती है। याचिका में ‘इंडियाज गॉट टैलेंट’ के होस्ट समय रैना, विपुन गोयल, बलराज परविंदर सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर जैसे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स द्वारा दिव्यांगों पर किए गए मजाक को लेकर आपत्ति जताई गई थी।
कॉमेडियन्स को सामाजिक दंड और सकारात्मक दिशा में निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने रैना और अन्य कॉमेडियन्स को भविष्य में सावधान रहने का निर्देश दिया। इसके साथ ही उन्हें महीने में दो कार्यक्रम आयोजित करने को कहा गया, जिनमें विकलांग व्यक्तियों की सफलता की कहानियों को साझा किया जाए। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य SMA पीड़ित लोगों के लिए फंड जुटाना है। कोर्ट ने इसे सामाजिक दंड बताया और अन्य सजाओं से उन्हें राहत प्रदान की।
