बीकानेर जिले के बम्बलू गांव में 11 वर्ष पुराने भंवरनाथ हत्याकांड पर अदालत ने सोमवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए एक ही परिवार के सात सदस्यों को आजीवन कारावास की सजा दी। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने सभी दोषियों पर 22-22 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया। निर्धारित राशि जमा न करने पर उन्हें छह महीने का अतिरिक्त कठोर कारावास भुगतना होगा।
घटना की पृष्ठभूमि
यह मामला 27 मई 2014 का है। जामसर निवासी अन्नानाथ द्वारा दर्ज रिपोर्ट के अनुसार, उसका भाई भंवरनाथ अपने चाचा के घर जा रहा था, तभी पिकअप में सवार मोहननाथ, हेमनाथ, धन्नानाथ, शंकरनाथ, बाधू देवी, सीता और सरोज ने उसका रास्ता रोक लिया। आरोप है कि सभी ने मिलकर भंवरनाथ पर लाठियों से हमला किया। झड़प के दौरान पिकअप दीवार से टकरा गई, जिसके बाद आरोपी वाहन वहीं छोड़कर फरार हो गए।
गंभीर रूप से घायल भंवरनाथ को पीबीएम अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने उसी वर्ष अगस्त में आरोप पत्र अदालत में प्रस्तुत कर दिया था, जिसके बाद लंबी सुनवाई चली।
अदालत में प्रस्तुत साक्ष्य
अभियोजन पक्ष ने घटना स्थल से मिले खून से सने कपड़े, लाठी, नियंत्रण नमूने और अन्य बरामद सामग्री अदालत में पेश की। एफएसएल रिपोर्ट और चिकित्सकीय अभिलेखों ने पुष्टि की कि भंवरनाथ को अत्यंत गंभीर चोटें पहुंचाई गई थीं। जांच अधिकारियों और गवाहों की गवाही को विश्वसनीय मानते हुए अदालत ने इसे सामूहिक हमले और हत्या की मंशा से की गई वारदात माना।
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कौन-कौन दोषी ठहरे
दोषियों में मोहननाथ, हेमनाथ और धन्नानाथ सगे भाई हैं, जबकि हेमनाथ के बेटे शंकरनाथ, उसकी पत्नी बाधू देवी, बेटी सरोज और सीता को भी समान रूप से अपराध का सहभागी पाया गया। अदालत ने इन्हें धारा 302/149 के तहत आजीवन कारावास तथा धारा 147 के तहत एक वर्ष का कठोर कारावास अतिरिक्त रूप से सुनाया।
विवाद की जड़
जांच में स्पष्ट हुआ कि हत्या के पीछे भूमि विवाद प्रमुख कारण था। मृतक भंवरनाथ ने दुर्गनाथ नामक व्यक्ति से जमीन खरीदी थी, परंतु आरोपी पक्ष का दावा था कि उस संपत्ति में उनका भी हिस्सा है। तनाव बढ़ने पर यह विवाद हिंसक झड़प में बदल गया, जिसमें भंवरनाथ की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में 30 से अधिक चोटों के निशान दर्ज किए गए।
अभियोजन की भूमिका
अपर लोक अभियोजक बसंत मोहता ने अदालत में 14 गवाहों और 34 दस्तावेजों के आधार पर अभियोजन का पक्ष मजबूती से रखा। परिवादी पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ओपी हर्ष ने पैरवी की। अदालत ने इन साक्ष्यों को पर्याप्त माना और दोषियों को कठोर सजा सुनाई।
11 साल बाद मिला न्याय
लंबे समय से चल रही सुनवाई के बाद अदालत का यह फैसला पीड़ित परिवार के लिए राहत का विषय बना। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह मामला सामूहिक हिंसा का गंभीर उदाहरण है, जहां संगठित रूप से हमला कर एक व्यक्ति की हत्या की गई।
