राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जयपुर प्रवास के दौरान उद्यमियों से संवाद करते हुए कहा कि संघ का उद्देश्य किसी का विरोध या विनाश करना नहीं है, बल्कि व्यक्ति और समाज के समग्र विकास को प्रेरित करना है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संघ प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित समझ को महत्व देता है और लोगों से आग्रह किया कि बिना जाने राय न बनाएं।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मारक पर कार्यक्रम
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के साथ भागवत ने कालवाड़ स्थित धानक्या रेलवे स्टेशन परिसर में बने पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्मारक स्थल पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया। 13 नवंबर से चल रहे उनके जयपुर प्रवास के दौरान यह प्रमुख आयोजन रहा।
‘उद्यमी संवाद – नए क्षितिज की ओर’ कार्यक्रम में विचार
कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में आयोजित ‘उद्यमी संवाद – नए क्षितिज की ओर’ समारोह में भागवत ने कहा कि भारत की पहचान समावेशी है और हिंदू शब्द इसी व्यापक एकता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि संघ पूरे समाज को संगठित करता है ताकि लोग सत्यनिष्ठा और निस्वार्थ भाव से राष्ट्रहित में योगदान दे सकें।
तीन घंटे के इस संवाद में उद्योगपतियों ने आर्थिक और सामाजिक विषयों पर अपने प्रश्न रखे जिन्हें भागवत ने विस्तार से सुना और उत्तर दिए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. हेमंत सेठिया और प्रस्तावना राजस्थान क्षेत्र संघचालक रमेश चंद्र अग्रवाल ने दी।
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नीतियों पर उद्योग जगत की चिंताएं
निर्यात नीतियों को सरल बनाने के सुझावों पर भागवत ने कहा कि इस दिशा में सकारात्मक पहल की संभावना है और जल्द ठोस कदम दिखाई दे सकते हैं। वहीं टैरिफ बढ़ोतरी पर उन्होंने स्पष्ट किया कि यह देश की दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता से जुड़ा महत्वपूर्ण विषय है, इसलिए यहां समझौते की गुंजाइश कम है।
एमएसएमई और सहकार मॉडल पर बल
भागवत ने कहा कि कृषि, सहकारिता और उद्योग—ये तीनों भारत के विकास की मजबूत नींव हैं। उन्होंने बड़े उद्योगों से अपेक्षा की कि वे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए सहयोगी वातावरण तैयार करें, क्योंकि देश की वास्तविक आर्थिक मजबूती एमएसएमई सेक्टर में काम कर रहे लाखों लोगों के हाथों में है।
उन्होंने ‘खुशी आधारित उद्योगों’ को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता भी बताई और परिवार में संस्कारों को मजबूत करने पर बल देते हुए कहा कि सप्ताह में कम से कम एक बार परिवार को भोजन और भजन के लिए साथ बैठना चाहिए।
