गुजरात में नई सियासी शुरुआत, आज पटेल मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण; बड़े चेहरे आ सकते हैं शामिल
गुजरात की राजनीति में एक बार फिर बड़ा फेरबदल देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की अगुवाई में आज नई कैबिनेट का शपथ ग्रहण होना तय है। गुरुवार को पटेल सरकार के सभी मंत्रियों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद नए सिरे से कैबिनेट गठन की प्रक्रिया शुरू हुई। यह कदम राज्य में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों और 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, इस बार नई टीम में 2 डिप्टी मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं और कुल 26 मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है। गौरतलब है कि पिछली कैबिनेट में मुख्यमंत्री समेत कुल 17 मंत्री थे।
कैबिनेट में नई ऊर्जा भरने की रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव केवल चेहरों का नहीं, बल्कि संगठन और प्रशासन में नई ऊर्जा भरने की एक सोची-समझी रणनीति है। माना जा रहा है कि कई मौजूदा मंत्रियों का प्रदर्शन हाईकमान की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा। विशेषकर विसावदर उपचुनाव में AAP के उम्मीदवार गोपाल इटालिया से भाजपा की हार ने संगठन को गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया।
इसके मद्देनज़र, अब ऐसे नेताओं को मौका दिया जा सकता है जो संगठनात्मक रूप से सक्रिय हैं, मगर अभी तक मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली थी।
- Advertisement -
पुराने चेहरों की भी हो सकती है वापसी
हालांकि, पूरी तरह से नए चेहरों की कैबिनेट नहीं होगी। दो से तीन पूर्व मंत्रियों की वापसी भी संभावित है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने सितंबर 2021 में विजय रुपाणी की जगह पदभार संभाला था और 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सफलता दिलाकर दोबारा मुख्यमंत्री बने थे।
2025-26 में होने वाले निकाय चुनावों पर फोकस
गुजरात में विधानसभा चुनाव भले ही 2027 में होने हैं, लेकिन दिसंबर 2025 और जनवरी 2026 में होने वाले नगर निगम और नगरपालिका चुनावों को भाजपा एक बड़ी परीक्षा के रूप में देख रही है। नई कैबिनेट के गठन के पीछे यही रणनीतिक सोच मानी जा रही है कि पार्टी इन चुनावों से पहले खुद को जनता के बीच मज़बूत संदेश देने की स्थिति में लाना चाहती है।
हाईकमान की सक्रियता और नए समीकरण
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से यह स्पष्ट संकेत दिए गए हैं कि संगठन और सरकार के बीच समन्वय को और अधिक प्रभावशाली बनाया जाएगा। इस बार कैबिनेट में क्षेत्रीय संतुलन, जातिगत प्रतिनिधित्व, और कार्यकर्ता-आधारित चयन पर विशेष ध्यान दिया गया है।
साथ ही, जिन नेताओं को लंबे समय से किनारे रखा गया था, अब उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देने की तैयारी की जा रही है। इससे न सिर्फ संगठन में नई ऊर्जा आएगी, बल्कि भाजपा के अंदरूनी संतुलन को भी मजबूती मिलेगी।