मॉक ड्रिल में उजागर हुई फायर सेफ्टी की हकीकत, बीकानेर पीबीएम अस्पताल में सुरक्षा पर सवाल
जयपुर के एसएमएस अस्पताल में हाल ही में हुए अग्निकांड के बाद पूरे राजस्थान में स्वास्थ्य संस्थानों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर प्रशासन सतर्क हो गया है। इसी के तहत बीकानेर के सबसे बड़े पीबीएम अस्पताल में शुक्रवार को चर्म रोग विभाग में मॉक ड्रिल का आयोजन किया गया। लेकिन यह मॉक ड्रिल एक अभ्यास के बजाय फायर सेफ्टी व्यवस्था की पोल खोलने का कारण बन गई।
लीकेज से बहता रहा पानी, नहीं मिला जरूरी प्रेशर
अभ्यास के दौरान जैसे ही आग लगने की स्थिति बनाई गई, मौके पर पहुंची फायर ब्रिगेड की टीम के उपकरणों ने जवाब दे दिया।
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पानी की तेज धार की जगह पाइपों से जगह-जगह लीकेज होने लगा।
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कई स्थानों पर पाइप के छिद्रों से पानी रिसता रहा, जिससे वास्तविक दबाव नहीं बन सका।
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जो पानी आग बुझाने के लिए निकलना चाहिए था, वह जमीन पर व्यर्थ बहता रहा।
यह नजारा दर्शाता है कि यदि वास्तविक आपात स्थिति आती है, तो जान-माल को गंभीर खतरा हो सकता है।
फायर अधिकारी की दलील पर खड़े हुए गंभीर सवाल
स्थिति को नियंत्रित करने पहुंचे फायर ब्रिगेड अधिकारी ने सफाई में कहा:
“इस तरह के छोटे-मोटे लीकेज हर गाड़ी में हो जाते हैं, इससे प्रेशर पर खास असर नहीं पड़ता। अगर हर बार पाइप बदलेंगे तो राजस्व हानि होगी।”
इस बयान से सिस्टम की लापरवाही और व्यवस्थाओं की असंवेदनशीलता उजागर होती है। सवाल यह उठता है कि क्या राजस्व बचाने के नाम पर जन-जीवन खतरे में डाला जा सकता है?
सिस्टम की हकीकत: आदेश जारी होते हैं, अमल नहीं होता
राज्य सरकार द्वारा लगातार अस्पतालों की फायर सेफ्टी पर आदेश और दिशानिर्देश जारी किए जा रहे हैं। मगर जब अमल की बात आती है, तो स्थिति मॉक ड्रिल जैसी असफलताओं में बदल जाती है।
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यदि मॉक ड्रिल में ही उपकरण फेल हो जाएं,
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और फायर टीम तैयार न मिले,
तो असली हादसे में हालात कितने भयावह हो सकते हैं, इसकी केवल कल्पना की जा सकती है।
अब सवाल प्रशासन के सामने
बीकानेर जैसे मेडिकल हब में यदि सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर है, तो बाकी जिलों की स्थिति पर भी चिंता लाजमी है।
प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के सामने अब यह बड़ा सवाल है:
क्या अग्निशमन विभाग केवल औपचारिकता निभा रहा है,
या वास्तव में वह किसी आपदा से निपटने के लिए सज्ज और सक्षम है?