अजमेर। सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के प्रमुख खादिम और अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने तालिबान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए उसे “इस्लाम और इंसानियत का दुश्मन” करार दिया है। उन्होंने तालिबान के हिंसक और अमानवीय कृत्यों की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि ऐसे कट्टरपंथी संगठनों ने इस्लाम की मूल शिक्षाओं को बदनाम किया है।
तालिबान का असली चेहरा उजागर
चिश्ती ने स्पष्ट किया कि तालिबान के क्रियाकलाप इस्लाम के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध हैं। उन्होंने कहा,
“इस्लाम एक अमनपसंद मजहब है, जो मोहब्बत, भाईचारे और इंसाफ की बात करता है। लेकिन तालिबान नफरत, हिंसा और आतंकवाद का चेहरा बन चुका है।”
उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा बौद्ध प्रतिमाओं के विध्वंस, स्कूलों पर हमले, और दरगाहों व सूफी स्थलों पर हिंसा को “मानवता के विरुद्ध अपराध” बताया।
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मजहब के नाम पर नफरत बर्दाश्त नहीं
चिश्ती ने कहा कि तालिबान के कथित इस्लामी एजेंडे ने दुनिया में इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने चेताया:
“जो अपने ही मजहब के अनुयायियों की हत्या करे, मासूम बच्चों को निशाना बनाए और सूफी परंपरा का अपमान करे, वह इस्लाम का नाम लेने के लायक नहीं है।”
सरकार से की कड़ी कार्रवाई की मांग
सैयद सरवर चिश्ती ने भारत सरकार से अपील की कि देश में तालिबान या उससे सहानुभूति रखने वाली किसी भी विचारधारा पर सख्ती से कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि ऐसे संगठनों को न तो वैचारिक संरक्षण मिले और न ही धार्मिक मंच।
“सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत की ज़मीन से किसी भी तरह की तालिबानी सोच को पनपने का मौका न मिले।”
सूफी परंपरा: इस्लाम का असली रूप
उन्होंने अजमेर दरगाह की सूफी परंपरा की चर्चा करते हुए कहा कि यह परंपरा मोहब्बत, सहिष्णुता और इंसानियत की मिसाल है।
“हमेशा से सूफी संतों ने समाज में भाईचारा फैलाने का काम किया है। तालिबान जैसे संगठन उस परंपरा का अपमान कर रहे हैं।”