राजस्थान में मुफ्त बिजली योजना को झटका, बिना छत वाले उपभोक्ता अब योजना से बाहर
राजस्थान में पीएम सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना के तहत लाखों घरेलू उपभोक्ताओं को हर माह 150 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का वादा किया गया था। लेकिन अब इस योजना पर अचानक यू-टर्न लेते हुए राज्य की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) ने उन उपभोक्ताओं के लिए योजना को अमल में लाने से हाथ पीछे खींच लिए हैं, जिनके पास खुद की छत नहीं है।
राज्य में करीब 10 लाख उपभोक्ता ऐसे हैं जिनके पास छत नहीं है, और शुरुआत में सरकार ने इनके लिए सामुदायिक सोलर पैनल मॉडल की योजना तैयार की थी। लेकिन अब केंद्र सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की संशोधित गाइडलाइन के बाद ये मॉडल रद्द कर दिया गया है। इसका सीधा असर गरीब और किरायेदार उपभोक्ताओं पर पड़ेगा, जो योजना से बाहर हो जाएंगे।
जुलाई में आ गई थी नई गाइडलाइन, फिर भी छिपाई गई सच्चाई
मंत्रालय ने इस वर्ष जुलाई 2025 में ही संशोधित गाइडलाइन जारी कर दी थी, जिसमें स्पष्ट कहा गया कि सब्सिडी केवल उन्हीं उपभोक्ताओं को मिलेगी, जो अपने घर की छत पर सोलर पैनल लगवाएंगे। सामुदायिक सोलर मॉडल को पूरी तरह हटा दिया गया।
चौंकाने वाली बात यह है कि डिस्कॉम के अफसरों को इस बदलाव की पूरी जानकारी थी, लेकिन न तो सरकार को इसकी सही तस्वीर दी गई और न ही आम जनता को समय रहते अवगत कराया गया। उलटे, अधिकारी योजना की सफलता का प्रचार करते रहे और लाखों उपभोक्ताओं को भ्रमित करते रहे।
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योजना के तीन मॉडल, अब एक ही प्रभावी
राजस्थान में मुफ्त बिजली योजना को तीन वर्गों में बांटा गया था:
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घरेलू उपभोक्ता जिनके पास छत है:
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1.1 किलोवाट का सोलर पैनल लगाया जाएगा।
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लागत: ₹17,000 (जिस पर केंद्र सरकार की सब्सिडी उपलब्ध है)।
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जिनके पास छत नहीं है:
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सामुदायिक रूप से ग्राउंड सोलर पैनल लगाने की योजना थी।
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अब यह मॉडल रद्द हो चुका है।
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अति गरीब या मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट में रहने वाले लोग:
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इनके लिए भी सामूहिक मॉडल की बात थी, जो अब संदेह में है।
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अब इन तीन में से केवल पहला मॉडल ही औपचारिक रूप से आगे बढ़ रहा है।
जवाब मांगते सवाल
राज्य सरकार और डिस्कॉम से अब आमजन को कई अहम सवालों के जवाब चाहिए:
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जब मार्च 2025 में ही योजना का प्रारूप तैयार कर लिया गया था, तो मंत्रालय को औपचारिक प्रस्ताव भेजने में देर क्यों की गई?
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क्या यह बजट घोषणा और मुख्यमंत्री की उद्घोषणा के बावजूद केंद्र को समय पर योजना की जानकारी नहीं दी गई?
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अब वे लाखों उपभोक्ता, जो योजना से बाहर हो चुके हैं, उन्हें कैसे राहत दी जाएगी?
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क्या राज्य सरकार अपने स्तर पर कोई वैकल्पिक मॉडल लाएगी, जिससे बिना छत वाले उपभोक्ताओं को भी लाभ मिल सके?
योजना की पारदर्शिता और भरोसे पर सवाल
इस पूरे मामले ने योजना की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस योजना को गरीबों, किरायेदारों और आम उपभोक्ताओं के लिए उम्मीद की किरण बताया जा रहा था, उसी में अब लाखों लोग पीछे छूट रहे हैं।
केंद्र और राज्य सरकारों को इस विषय पर जल्द स्पष्ट नीति लानी होगी ताकि जनता के भरोसे को ठेस न पहुंचे।
निष्कर्ष: योजनाओं से पहले तैयारी ज़रूरी
राजस्थान में मुफ्त बिजली योजना का यह यू-टर्न दर्शाता है कि योजनाओं के प्रचार से पहले नीतिगत स्पष्टता और समयबद्ध क्रियान्वयन कितना आवश्यक है। वरना इससे न केवल जनता का भरोसा टूटता है, बल्कि भविष्य की योजनाओं पर भी सवाल उठने लगते हैं।