नागपुर से देश को संदेश: संघ प्रमुख का स्वदेशी, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक नेतृत्व पर आह्वान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने इस वर्ष विजयदशमी उत्सव विशेष रूप से मनाया, क्योंकि इस अवसर पर संघ के स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो गए। नागपुर में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देशवासियों को संबोधित करते हुए स्वदेशी, आत्मनिर्भरता और सामाजिक परिवर्तन जैसे अहम मुद्दों को केंद्र में रखा।
उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले का उल्लेख करते हुए सरकार और सेना की त्वरित प्रतिक्रिया की सराहना की, वहीं वैश्विक आर्थिक प्रणाली पर अत्यधिक निर्भरता को खतरनाक बताया। भागवत ने चेताया कि भारत को अब अपना विकास मॉडल बनाकर विश्व को “धर्म” की नई दृष्टि देनी चाहिए — जो केवल पूजा या परंपराओं तक सीमित नहीं, बल्कि सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय पर आधारित हो।
“निर्भरता को मजबूरी न बनने दें”: स्वदेशी और स्वावलंबन पर बल
संघ प्रमुख ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी जरूरी है, लेकिन पूरी तरह से उसी पर निर्भर होना आत्मघाती हो सकता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका द्वारा हाल में अपनाई गई टैरिफ नीतियों से यह स्पष्ट हो गया है कि स्वदेशी उत्पादन और आत्मनिर्भरता की ओर लौटना अब विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है।
“जीना है तो स्वदेशी और स्वावलंबी जीवन अपनाना होगा। बाहरी संबंध जरूरी हैं, लेकिन उन पर पूर्ण निर्भरता हमारी नीति नहीं होनी चाहिए।”
- Advertisement -
पहलगाम हमले का जिक्र, आतंकियों को मिला मुंहतोड़ जवाब
मोहन भागवत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा कि आतंकियों ने 26 भारतीयों को धर्म पूछकर मौत के घाट उतार दिया। इस घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था।
संघ प्रमुख ने कहा कि केंद्र सरकार और सशस्त्र बलों ने इस हमले का करारा जवाब दिया, जिससे देशवासियों में भरोसा और एकता की भावना और मजबूत हुई। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का भी उल्लेख किया, जिसके जरिए सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों के ठिकानों को नेस्तनाबूद किया।
“जैसा समाज, वैसी व्यवस्था”: समाज में बदलाव की अपील
अपने संबोधन में मोहन भागवत ने जोर देकर कहा कि किसी भी देश की व्यवस्था वहां के समाज का प्रतिबिंब होती है।
“अगर समाज अनुशासित, सजग और नैतिक होगा, तो वही उसके प्रशासन और कानून में भी परिलक्षित होगा। व्यवस्थाएं अपने आप नहीं बदलतीं, उन्हें समाज बदलता है।”
उन्होंने कहा कि संघ अपने 100 वर्षों की यात्रा में सामाजिक चेतना और राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगा रहा है। अब समय है कि यह चेतना व्यापक रूप ले और हर नागरिक अपने आचरण से राष्ट्र को सशक्त बनाए।
“धर्म का अर्थ केवल पूजा नहीं, सभी का कल्याण है”
भागवत ने “धर्म” की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा कि धर्म का आशय केवल धार्मिक आस्था या पूजा-पद्धति से नहीं है। बल्कि यह वह दर्शन है, जो सबको साथ लेकर चले और सबका कल्याण करे।
उन्होंने कहा, “आज दुनिया भारत से एक नई दिशा की अपेक्षा कर रही है। पश्चिमी विकास मॉडल पर अंधानुकरण से हमें बचना होगा, क्योंकि वह प्रकृति और समाज के लिए स्थायी नहीं है। भारत को अब फिर से नैतिक और भौतिक संतुलन का मार्ग दिखाना होगा।”
पड़ोसी देशों की हिंसा पर जताई चिंता
संघ प्रमुख ने भारत के पड़ोसी देशों में हालिया हिंसक आंदोलनों और राजनीतिक अस्थिरता पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि प्रजातांत्रिक तरीके से ही परिवर्तन संभव है, हिंसा केवल अराजकता लाती है। भारत का पड़ोसियों से ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ता है, इसलिए वहां की स्थिति भारत के लिए भी चिंताजनक है।
पीएम मोदी ने दी संघ को 100वीं वर्षगांठ की शुभकामनाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ की शताब्दी वर्ष पर शुभकामनाएं देते हुए सोशल मीडिया पर लिखा:
“आज से 100 साल पहले विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। तब से अब तक लाखों स्वयंसेवकों ने राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया है।”
शस्त्र पूजन कर दी परंपरा को श्रद्धांजलि
कार्यक्रम के अंत में मोहन भागवत और पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने पारंपरिक शस्त्र पूजन किया, जो विजयदशमी की एक प्रमुख सांस्कृतिक परंपरा मानी जाती है। यह पूजन राष्ट्र रक्षा और शक्ति के सदुपयोग के भाव को पुष्ट करता है।