महात्मा गांधी की भाषा-यात्रा: जब एक गुजराती बने पूरे भारत की आवाज़
2 अक्टूबर 2025 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 156वीं जयंती मनाई जा रही है। इस अवसर पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। दिल्ली के राजघाट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई नेताओं ने प्रार्थना सभा में भाग लिया और गांधीजी के सिद्धांतों को याद किया। लेकिन गांधीजी केवल राजनीतिक विचारों के प्रतीक नहीं थे, वे एक सांस्कृतिक और भाषायी आंदोलन के भी अग्रणी थे। खासकर हिंदी और हिंदुस्तानी भाषा के जरिए उन्होंने देश की जनता से सीधा संवाद स्थापित किया।
दक्षिण अफ्रीका से लौटे गांधी ने सीखी हिंदी, बनाया आंदोलन की भाषा
महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटे। बैरिस्टर होने के बावजूद उन्हें यह जल्दी ही समझ में आ गया कि भारत जैसे विशाल और विविध भाषाओं वाले देश में जनता से संवाद स्थापित करने के लिए हिंदी सीखना आवश्यक है। गांधीजी मूल रूप से गुजराती भाषी थे और अंग्रेजी में दक्षता रखते थे, लेकिन देश के कोने-कोने तक पहुंचने के लिए उन्होंने हिंदी सीखी। उन्होंने बिहार के चंपारण आंदोलन से इसकी शुरुआत की।
‘हिंदुस्तानी’ को बनाया संपर्क भाषा, जोड़ी हिंदी-उर्दू की सहजता
गांधीजी द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा केवल हिंदी नहीं थी, वह ‘हिंदुस्तानी’ थी — एक ऐसी सरल और सहज भाषा जो हिंदी और उर्दू दोनों के मेल से बनी थी। यह भाषा न तो अत्यधिक संस्कृतनिष्ठ थी और न ही फारसी की ओर झुकी हुई। गांधीजी का मानना था कि यही भाषा आमजन को जोड़ेगी और यही भारत के स्वतंत्रता संग्राम को जनांदोलन बनाएगी।
प्रेमचंद से जुड़ाव और हिंदी साहित्य को नया आयाम
महात्मा गांधी का प्रभाव केवल राजनीति तक सीमित नहीं था। हिंदी साहित्य जगत पर भी उनका गहरा प्रभाव पड़ा। प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद ने स्वीकार किया था कि हिंदी और राष्ट्रीय आंदोलन से उनका जुड़ाव गांधीजी के कारण ही हुआ। गांधीजी के विचारों ने हिंदी लेखकों को सामाजिक मुद्दों की ओर प्रेरित किया और एक नई वैचारिक धारा का निर्माण किया।
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गांधीजी के हिंदी समाचार पत्र: नवजीवन और हरिजन सेवक
गांधीजी ने जनता से संवाद के लिए हिंदी को माध्यम बनाया। उन्होंने हिंदी में दो प्रमुख समाचार पत्र निकाले — नवजीवन और हरिजन सेवक। इन अखबारों की सदस्यता लाखों लोगों ने ली थी और गांधीजी स्वयं इनका संपादन करते थे। वे अधिकतर पत्रों का उत्तर भी हिंदी में ही देना पसंद करते थे। यह उनका देश की आम जनता से जुड़ने का सबसे सशक्त माध्यम था।
राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का समर्थन
गांधीजी ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि देश की प्रगति के लिए हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना आवश्यक है। उन्होंने कहा था,
“राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी का प्रयोग देश की प्रगति के लिए आवश्यक है।”
गांधीजी का मानना था कि अंग्रेजी केवल एक सीमित वर्ग की भाषा है, जबकि हिंदी और हिंदुस्तानी पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरो सकती हैं।
आज के भारत में गांधीजी की भाषा-दृष्टि की प्रासंगिकता
आज जब भारत विविध भाषाओं के बीच अपनी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत कर रहा है, गांधीजी की यह सोच और अधिक प्रासंगिक हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गांधी जयंती के अवसर पर अपने संदेश में कहा कि गांधीजी के आदर्श, सादगी और सेवा की भावना आज भी देश को प्रेरित करती है।
निष्कर्ष: गांधीजी की भाषा नीति ने आंदोलन को बनाया जनांदोलन
महात्मा गांधी ने यह सिद्ध कर दिया था कि भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि परिवर्तन की शक्ति है। हिंदी और हिंदुस्तानी को अपनाकर उन्होंने देश की आत्मा को जगाया और स्वतंत्रता संग्राम को एक सशक्त जनांदोलन में बदल दिया। आज उनकी 156वीं जयंती पर यह याद करना आवश्यक है कि उन्होंने किस तरह भाषाई एकता से राजनीतिक और सामाजिक चेतना का निर्माण किया।