वोटर आईडी विवाद: सोनिया गांधी की नागरिकता से पहले बनी वोटर लिस्ट में एंट्री? भाजपा नेता ने उठाए सवाल
देश में ‘वोट चोरी’ पर छिड़ी बहस के बीच भाजपा नेता अमित मालवीय ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने दावा किया है कि सोनिया गांधी को भारत की नागरिकता मिलने से पहले ही उनका नाम मतदाता सूची में जोड़ दिया गया था, जो चुनावी नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।
मालवीय का दावा: 1980 में वोटर लिस्ट में जुड़ा नाम, जबकि नागरिकता 1983 में मिली
अमित मालवीय ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में एक कथित मतदाता सूची की तस्वीर साझा की है, जिसमें गांधी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सोनिया गांधी का नाम भी दर्ज है। उन्होंने लिखा कि सोनिया गांधी का नाम पहली बार 1980 में मतदाता सूची में शामिल किया गया, जबकि उन्हें भारत की नागरिकता 30 अप्रैल 1983 को मिली।
उनके अनुसार, यह मतदाता पंजीकरण अधिनियम का उल्लंघन है, जो केवल भारतीय नागरिकों को ही मतदान का अधिकार देता है। 1980 में सोनिया गांधी इटली की नागरिक थीं और इंदिरा गांधी के आधिकारिक निवास 1, सफदरजंग रोड, नई दिल्ली में रह रही थीं।
- Advertisement -
दो बार मतदाता सूची में नाम जोड़ा गया, फिर हटाया गया
मालवीय ने यह भी बताया कि सोनिया गांधी का नाम 1980 के बाद 1983 में दोबारा वोटर लिस्ट में जोड़ा गया, जबकि उस समय तक भी उनकी नागरिकता औपचारिक रूप से पूरी नहीं हुई थी। विरोध के बाद 1980 में उनका नाम सूची से हटाया गया, लेकिन 1983 की सूची में फिर से जोड़ा गया, जिसकी अर्हता तिथि 1 जनवरी 1983 थी — जबकि नागरिकता 30 अप्रैल को मिली।
कांग्रेस ने लगाया चुनाव आयोग पर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का आरोप
दूसरी ओर, कांग्रेस लगातार चुनाव आयोग पर मतदाता सूची में धांधली के आरोप लगा रही है। पार्टी का कहना है कि बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में फर्जी नाम जोड़कर और जिंदा मतदाताओं को सूची से हटाकर भाजपा को फायदा पहुंचाया जा रहा है। कांग्रेस विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की पारदर्शिता पर भी सवाल उठा चुकी है।
राजनीतिक टकराव तेज, जवाब का इंतजार
मालवीय के इस दावे पर अब तक कांग्रेस की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन यह मामला राजनीतिक बहस को और गर्मा सकता है, क्योंकि यह सीधे एक पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष से जुड़ा है।
निष्कर्ष:
सोनिया गांधी की कथित समय से पहले बनी वोटर आईडी को लेकर उठे सवालों ने एक बार फिर भारत की मतदाता सूची की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर बहस छेड़ दी है। भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप तेज हो चुके हैं, लेकिन सच क्या है — यह चुनाव आयोग की जांच और दस्तावेजों पर निर्भर करेगा।