दिल्ली की साकेत कोर्ट ने एक नाबालिग लड़के के यौन शोषण के दोषी को 15 साल कैद की सजा सुनाई है। न्यायाधीश अनु अग्रवाल ने इस फैसले में कहा कि लड़के भी लड़कियों की तरह यौन शोषण के प्रति संवेदनशील होते हैं, और यह एक भ्रम है कि केवल लड़कियां ही इसका शिकार होती हैं।
यह मामला 2019 का है, जिसमें एक व्यक्ति ने एक नाबालिग लड़के के साथ कुकर्म किया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) अनु अग्रवाल ने 31 जुलाई को अपने आदेश में स्पष्ट किया कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षा देने के लिए बनाया गया है, चाहे उनका लिंग कुछ भी हो।
सरकारी वकील, अरुण के.वी. ने बहस के दौरान महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें बताया गया था कि लगभग 54.68% बाल यौन शोषण के शिकार लड़के हैं। उन्होंने तर्क दिया कि लड़के भी लड़कियों के समान ही संवेदनशील होते हैं।
अदालत ने इस तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि यौन शोषण का शिकार होने वाले लड़कों को भी वैसी ही मानसिक पीड़ा होती है, जैसी अन्य पीड़ितों को। वे इस तरह की घटना के बाद तनाव से गुजरते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि सामाजिक ढांचे के कारण लड़के शर्मिंदगी महसूस करते हैं और खुलकर इस बारे में बात नहीं कर पाते।