क्या UPI सेवा हमेशा मुफ्त बनी रहेगी? RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने स्पष्ट किया स्टैंड
यूपीआई को लेकर एक बड़ा सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है—क्या यह सेवा हमेशा मुफ्त बनी रहेगी? इस पर आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को एमपीसी (मौद्रिक नीति समिति) के फैसलों के एलान के बाद पत्रकारों से बातचीत में महत्वपूर्ण टिप्पणी की।
उन्होंने साफ किया कि यूपीआई जैसी भुगतान प्रणाली को बनाए रखने में खर्च आता है, जिसे किसी न किसी को वहन करना होगा। उन्होंने कहा, “मैंने कभी नहीं कहा कि यूपीआई हमेशा मुफ्त रहेगा। मैंने केवल इतना कहा था कि इसके संचालन से जुड़े खर्च हैं, और कोई तो इसके लिए भुगतान करेगा।”
चार्ज लगाए जाने की अटकलें और ICICI बैंक का नाम
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बीते कुछ दिनों से ऐसी रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं कि आईसीआईसीआई बैंक 1 अगस्त 2025 से अपने पेमेंट एग्रीगेटर्स से यूपीआई लेनदेन पर चार्ज वसूलना शुरू कर सकता है। हालांकि बैंक ने अब तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, बैंक ने जून के आखिर में अपने पेमेंट एग्रीगेटर्स को नए चार्ज स्ट्रक्चर की जानकारी दी थी। बताया जा रहा है कि एस्क्रो अकाउंट्स के लिए दो आधार अंक (यानी 100 रुपये पर 2 पैसे) और अधिकतम 6 रुपये प्रति ट्रांजैक्शन चार्ज लिया जाएगा, जबकि गैर-एस्क्रो खातों के लिए चार आधार अंक और अधिकतम 10 रुपये तक की वसूली हो सकती है।
हालांकि, फिलहाल ग्राहकों और व्यापारियों से कोई सीधा शुल्क नहीं लिया जा रहा है।
गवर्नर का दोहराया रुख: मुफ्त सेवा हमेशा संभव नहीं
संजय मल्होत्रा इससे पहले भी जुलाई में BFSI समिट में इस मुद्दे पर बोल चुके हैं। उन्होंने कहा था कि मुफ्त यूपीआई सेवा लंबे समय तक टिकाऊ नहीं हो सकती। यह एक महत्वपूर्ण आधारभूत संरचना है और इसके संचालन पर लागत आती है। अभी सरकार इसकी सब्सिडी देती है, लेकिन यह व्यवस्था स्थायी नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि “कोई भी सेवा तभी टिकाऊ होती है जब उसकी लागत का भुगतान किया जाए। यह जरूरी नहीं कि भुगतान सरकार करे या उपभोक्ता, लेकिन भुगतान जरूरी है।”
तेजी से बढ़ रही UPI की उपयोगिता
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार केवल जून 2025 में ही 18.4 अरब यूपीआई ट्रांजैक्शन दर्ज हुए, जो सालाना आधार पर 32 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाते हैं। इससे स्पष्ट है कि यूपीआई भारत की सबसे लोकप्रिय और व्यापक डिजिटल भुगतान प्रणाली बन चुकी है।
निष्कर्ष
आरबीआई गवर्नर की हालिया टिप्पणियों से संकेत मिलता है कि यूपीआई हमेशा के लिए मुफ्त नहीं रह सकता। हालांकि अभी तक आम उपभोक्ताओं से किसी तरह का चार्ज नहीं लिया जा रहा है, लेकिन भविष्य में संचालन लागत को लेकर नीति में बदलाव संभव है। सरकार या सिस्टम को यह तय करना होगा कि इस डिजिटल ढांचे की आर्थिक स्थिरता कैसे सुनिश्चित की जाए।