


राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (RGHS) में नए घोटाले उजागर हुए हैं। जांच में सामने आया है कि लाभार्थियों को ऐसी आयुर्वेदिक चीजें बांटी गईं जिनकी योजना में अनुमति नहीं थी। साथ ही कई डॉक्टरों की फर्जी पर्चियों का इस्तेमाल कर लाखों रुपये के फर्जी बिल तैयार किए गए।
च्यवनप्राश के नाम पर दवा
राज्य के 36 मेडिकल स्टोर्स—जिनमें विधानसभा और सचिवालय स्थित स्टोर्स भी शामिल हैं—ने RGHS योजना में स्वीकृत न होने के बावजूद “केसरी जीवन” नामक च्यवनप्राश को दवा के रूप में लाभार्थियों को बांटा और उसका भुगतान लिया।
फर्जी पर्चियों का खेल
जयपुर की पुरानी बस्ती स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कई डॉक्टरों की पर्चियों पर अज्ञात लोगों ने अपनी हैंडराइटिंग से दवाएं जोड़ दीं। जांच में डॉक्टरों ने स्पष्ट किया कि वे दवाएं न तो उनके लिखे हुए हैं और न ही वे हस्ताक्षर असली हैं।
डॉक्टरों की प्रतिक्रिया
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डॉ. फुरकान अजीज अख्तर: हस्ताक्षर और हैंडराइटिंग मेरी नहीं है।
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डॉ. मधु गुप्ता: हस्ताक्षर जैसे लग रहे हैं, पर मैंने नहीं किए।
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डॉ. विजय शंकर शर्मा: हस्ताक्षर मेरे जैसे हैं, लेकिन लिखावट मेरी नहीं।
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डॉ. अंजुकुमारी और डॉ. दीपा गर्ग: पर्चियों पर लिखी दवाएं मेरी हैंडराइटिंग में नहीं हैं।
जांच में दोषी स्टोर्स
राज्यभर में 30 से अधिक स्टोर्स और सहकारी समितियों की पहचान हुई है, जहां अनियमितताएं पाई गईं। इन स्टोर्स का भुगतान फिलहाल निलंबित कर दिया गया है।
फार्मेसी-डॉक्टरों की मिलीभगत
जांच में यह भी सामने आया कि कुछ जगहों पर फार्मेसी और डॉक्टरों ने मिलकर संगठित रूप से फर्जी पर्चियों, बिलों और दवाओं के जरिए योजना का दुरुपयोग किया। कई लाभार्थियों को बिना दवा दिए ही बिल उठाए गए और उन्हें भर्ती तक दिखा दिया गया।
सरकारी प्रतिक्रिया और भुगतान
RGHS की परियोजना अधिकारी शिप्रा विक्रम ने बताया कि कई अस्पतालों और फार्मेसियों की पहचान कर ली गई है और उन पर कार्रवाई की जा रही है। चिकित्सा मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर के अनुसार, 350 करोड़ से अधिक की बकाया राशि का भुगतान हो चुका है और अगले महीने 300 से 400 करोड़ रुपये और जारी किए जाएंगे।
निष्कर्ष:
राजस्थान में RGHS के नाम पर चल रही स्वास्थ्य सेवाओं में घोटाले और भ्रष्टाचार की परतें लगातार खुलती जा रही हैं। अब तक सामने आई जानकारियां योजना की पारदर्शिता और निगरानी पर बड़े सवाल खड़े करती हैं।