

सुप्रीम कोर्ट ने कहा—जब साथ न चल सके, तो तलाक है बेहतर विकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के एक मामले में स्पष्ट कहा कि अगर पति-पत्नी एक छत के नीचे साथ नहीं रहना चाहते, तो ऐसे मामलों में तलाक की स्वीकृति दे देनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी जोर दिया कि “खराब विवाह को जबरन चलाना मानसिक पीड़ा को बढ़ावा देता है”, इसलिए तलाक ही बेहतर विकल्प है।
इस फैसले में न्यायालय ने विक्रम नाथ और संदीप मेहता की याचिका सुनी। पति की ओर से तलाक का अनुरोध था, जबकि पत्नी इसका विरोध कर रही थी। करीब 16 साल चली शादी के एक वर्ष बाद दंपत्ति अलग रहने लगे थे और मध्यस्थता विफल हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के अंतर्गत तलाक मंजूर कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की पांच ऐतिहासिक टिप्पणियाँ तलाक मामलों में:
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“जबरन साथ रहने से होती है मानसिक पीड़ा”
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा—जब समाजजोड़ का कोई प्रयास सफल न हो, तब तलाक की स्वीकृति देना उचित है।- Advertisement -
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“जासूसी तक पहुंचा रिश्ता, समझें टूट चुका है”
हालिया फैसले में जस्टिस नागरत्ना व जस्टिस शर्मा ने कहा कि बिना जानकारी की कॉल रिकॉर्डिंग तलाक में पर्याप्त सबूत मानी जा सकती है। -
“शादी टूटना जीवन का अंत नहीं”
फरवरी 2025 में कोर्ट ने 2020 की शादी को भंग करते हुए कहा—लड़की और लड़के दोनों एक नए जीवन की शुरुआत कर सकते हैं। -
“महिला को मिली गुजारा भत्ता की जीत”
अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने एक विद्वतापूर्ण फैसला सुनाया—इस्लामी रीत से हुई दूसरी शादी में पत्नी को 4 हजार रुपए मासिक भत्ता दिया जाए, शरीया कोर्ट का तलाक अमान्य घोषित किया। -
“5 करोड़ रुपए एकमुश्त गुजारा भत्ता”
2024 में कोर्ट ने एक ऐसे तलाक मामले में आदेश दिया जिसमें दंपत्ति 20 साल तक अलग रहने के बाद शादी टूट चुकी थी—कोर्ट ने पत्नी को 5 करोड़ रुपये एकमुश्त गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट के ये पांच फैसले तलाक कानून के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण मील के पत्थर हैं। कोर्ट ने बार-बार स्पष्ट किया कि केवल सामाजिक दबाव या मानदंड की पूर्ति के लिए विवाह को बनाए रखना मानसिक तनाव बढ़ा सकता है। जब मध्यस्थता विफल हो चुकी हो और रिश्ते में सम्मान या विश्वास न बचा हो, तो न्यायिक सहयोग से तलाक को सकारात्मक, मानव-केंद्रित, और भविष्य उन्मुख समाधान के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।