


राजस्थान सरकार ने एक अभूतपूर्व मानवीय कदम उठाते हुए उन असहाय, लावारिस और अनाथ मरीजों के लिए मुफ्त इलाज का रास्ता खोल दिया है, जिनके पास पहचान पत्र नहीं होता। लंबे समय से रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, धार्मिक स्थलों या सड़कों पर पाए जाने वाले गंभीर रूप से बीमार या मानसिक रूप से अस्वस्थ रोगी इलाज से वंचित थे, क्योंकि उनके पास कोई वैध पहचान नहीं होती थी।
मुख्यमंत्री की पहल पर चिकित्सा शिक्षा विभाग और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के बीच हुए एक अहम एमओयू के तहत अब पंजीकृत ट्रस्ट या एनजीओ द्वारा अस्पताल लाए गए इन रोगियों को केवल संगठन के प्रमाण-पत्र के आधार पर इलाज मिलेगा। इसमें मुफ्त दवाएं, ऑपरेशन, इंप्लांट और अन्य जरूरी उपचार शामिल हैं। अब पहचान पत्र की बाध्यता को समाप्त कर दिया गया है।
इस योजना के तहत राजस्थान मेडिकल रिलीफ सोसायटी इलाज का पूरा खर्च उठाएगी। साथ ही, एक संयुक्त समिति बनाई जाएगी जो योग्य ट्रस्टों और एनजीओ की सूची तैयार करेगी। यह व्यवस्था खासकर उन लोगों के लिए वरदान होगी जो सामाजिक और आर्थिक रूप से सबसे कमजोर स्थिति में हैं।

यह केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि उन हजारों बेसहारा लोगों के लिए एक नई शुरुआत है जिनके पास कोई नाम, पता या पहचान नहीं है। राजस्थान सरकार की यह पहल एक उदाहरण बन सकती है कि जब सरकार संवेदनशील होती है, तो इंसानियत की पहचान सबसे बड़ी होती है।