


केंद्र सरकार ने अब सरकारी अस्पतालों में मेडिकल प्रतिनिधियों (एमआर) के प्रवेश पर रोक लगा दी है। यह कदम दवा कंपनियों और डॉक्टरों के बीच होने वाली सांठगांठ पर लगाम लगाने के उद्देश्य से उठाया गया है। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) ने केंद्रीय अस्पतालों को निर्देश दिया है कि वे अस्पताल परिसर में मेडिकल प्रतिनिधियों को प्रवेश न करने दें।
डीजीएचएस के पत्र में कहा गया कि अगर दवा कंपनियां किसी नए उपचार या चिकित्सा शोध के बारे में जानकारी साझा करना चाहती हैं, तो उन्हें यह काम ईमेल या अन्य डिजिटल माध्यमों से करना होगा। यह आदेश 28 मई से लागू हो गया है।
इस कदम के पीछे एक प्रमुख कारण यह है कि अस्पतालों में फार्मास्यूटिकल्स के प्रतिनिधियों और डॉक्टरों के बीच बातचीत के कारण अस्पताल का कार्य प्रभावित हो रहा था, जिससे मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ता था।

फार्मास्यूटिकल्स मार्केटिंग प्रैक्टिसेज (यूसीपीएमपी) कोड
पिछले साल फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने फार्मास्यूटिकल्स मार्केटिंग प्रैक्टिसेज (यूसीपीएमपी) के लिए यूनिफॉर्म कोड लागू किया था। इस कोड के तहत दवा कंपनियों को डॉक्टरों और उनके परिवारों को उपहार या यात्रा भत्ता देने से रोक दिया गया है। इसके अनुसार, डॉक्टरों या उनके परिवार के सदस्य को किसी भी हालत में नकद या उपहार देना मना है।
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यूसीपीएमपी ने दवाइयों के निशुल्क नमूने वितरित करने पर भी रोक लगा दी थी, जो डॉक्टरों द्वारा लिखने के लिए अधिकृत नहीं थे। इसके अलावा, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने पंजीकृत चिकित्सा चिकित्सकों को केवल जेनेरिक दवाओं को लिखने के लिए निर्देश दिया था। यदि इन नियमों का पालन नहीं किया गया, तो डॉक्टरों को दंड का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें चिकित्सा लाइसेंस का निलंबन भी शामिल है।