



नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर दायर एक याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह एक “कल्पना-आधारित कहानी” जैसी लगती है और बिना किसी ठोस प्रमाण के ऐसे मामलों में अदालत दखल नहीं दे सकती।
याचिका में दावा किया गया था कि कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों को लाइफ जैकेट पहनाकर समुद्र में फेंक दिया गया। इस पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सख्त प्रतिक्रिया दी।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “हर बार आपके पास एक नई कहानी होती है। अब यह खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी कहां से आ रही है? वीडियो कौन बना रहा था? वह वापस कैसे आया? रिकॉर्ड में क्या है? देश कठिन दौर से गुजर रहा है, और आप इस तरह की काल्पनिक याचिकाएं ला रहे हैं।”
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्वेज ने कोर्ट को बताया कि उन्हें अंडमान क्षेत्र से फोन कॉल्स आए हैं और सोशल मीडिया व अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी ऐसी रिपोर्टें सामने आई हैं। उन्होंने मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की।
- Advertisement -

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि केवल सोशल मीडिया की रिपोर्टों के आधार पर याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती। “यदि आपके पास पुख्ता और विश्वसनीय सबूत हैं तो हम मानवाधिकारों के मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं, लेकिन आप हर दिन सोशल मीडिया से चीजें उठाकर याचिकाएं नहीं दायर कर सकते,” कोर्ट ने कहा।
गौरतलब है कि याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि महिलाओं और बच्चों सहित 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने के लिए समुद्र में छोड़ दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फिलहाल किसी भी तरह के निर्देश देने से इनकार कर दिया।