


वक्फ से पहले भी कई बार सुप्रीम कोर्ट के आगे झुकी सरकार, जानें बड़े मामले
नई दिल्ली। केंद्र सरकार एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के सामने बैकफुट पर नजर आई है। वक्फ अधिनियम, 2025 के दो विवादास्पद प्रावधान—‘वक्फ बाय यूज’ और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति—को लेकर सरकार ने कोर्ट में स्पष्ट किया कि इन प्रावधानों को लागू नहीं किया जाएगा।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने ‘वक्फ बाय यूज’ के प्रभावों पर सवाल उठाए। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आश्वस्त किया कि केंद्र सरकार न तो इसे लागू करेगी, न ही राज्यों को वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति की अनुमति देगी।
पहले भी पीछे हट चुकी है सरकार
यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद अपना स्टैंड बदला हो। मई 2022 में देशद्रोह कानून (आईपीसी की धारा 124ए) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि यह कानून असंवैधानिक प्रतीत होता है। इसके अगले ही दिन केंद्र ने कहा कि वह इस कानून की समीक्षा करेगा, जबकि इससे पहले सरकार इसका जोरदार समर्थन कर चुकी थी।
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अनुच्छेद 370 पर भी रुख बदला
सितंबर 2023 में अनुच्छेद 370 को लेकर सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने पूछा कि क्या संसद को किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने का अधिकार है, तो सरकार ने आश्वासन दिया कि जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा। कोर्ट ने सरकार के इस बयान को फैसले में रिकॉर्ड करते हुए उस संवैधानिक प्रश्न पर निर्णय देने की आवश्यकता नहीं समझी।
दिल्ली दंगों में भी बदला रुख
जून 2020 में दिल्ली दंगों की आरोपी साफूरा जरगर को मानवीय आधार पर जमानत दी गई थी। इस दौरान भी सॉलिसिटर जनरल ने आपत्ति न जताते हुए सरकार का रुख नरम किया था।
न्यायिक चेतावनियों से बदलती रणनीति
इन सभी मामलों से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट के रुख और संभावित निर्णयों के प्रभाव को देखते हुए केंद्र सरकार कई बार पीछे हट चुकी है। चाहे वक्फ अधिनियम हो, देशद्रोह कानून या अनुच्छेद 370, सरकार ने न्यायिक टकराव से बचने के लिए रणनीतिक तौर पर रुख बदला है। यह न केवल उसकी कानूनी नीति को दर्शाता है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक निगरानी क्षमता को भी मजबूत करता है।