


कृषि विवि परिसर में रिसा जहर, शोधभूमि बनी पर्यावरणीय संकट का केंद्र
बीकानेर स्थित स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय गंभीर पर्यावरणीय संकट से जूझ रहा है। विश्वविद्यालय परिसर में पास के औद्योगिक क्षेत्र की 200 से अधिक फैक्ट्रियों से निकलने वाला जहरीला पानी और रासायनिक अपशिष्ट सीधे डाला जा रहा है, जिससे करीब 20 हैक्टेयर हरित भूमि दलदल और बंजर ज़मीन में बदल चुकी है।
इसका असर केवल पेड़-पौधों तक सीमित नहीं रहा। बदबू और विषैली गैसों के कारण दो छात्रावास और एक अत्याधुनिक प्रयोगशाला को बंद करना पड़ा है। विश्वविद्यालय के 2500 से अधिक छात्र, शिक्षक और उनके परिवार स्वास्थ्य और मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं।
शोध की जगह जहरीली ज़मीन का अध्ययन
जहां कृषि विज्ञान के विद्यार्थियों को रिसर्च और नवाचार में जुटना चाहिए था, वहां अब वे पर्यावरणीय विनाश का प्रत्यक्ष अनुभव ले रहे हैं। हरे-भरे पेड़ सूखे ठूंठ में तब्दील हो चुके हैं।
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25 वर्षों से जारी समस्या, प्रशासनिक लापरवाही बरकरार
विश्वविद्यालय प्रशासन पिछले ढाई दशक से इस मुद्दे पर जिला प्रशासन, रीको, जिला उद्योग केंद्र और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) से गुहार लगाता आ रहा है। 4 अगस्त 2023 को NGT भोपाल ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को स्थाई समाधान के निर्देश दिए थे, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है।
उम्मीद अब मुख्यमंत्री और राज्यपाल से
विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े से लिखित रूप में निवेदन किया है कि विश्वविद्यालय को प्रदूषित जल और अपशिष्ट से मुक्त किया जाए। हाल ही में एक किसान सम्मेलन में मुख्यमंत्री को इस विषय में अवगत भी कराया गया।
आंकड़ों में पर्यावरणीय पीड़ा:

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25 वर्षों से फैक्ट्रियों का रासायनिक अपशिष्ट विश्वविद्यालय में डाला जा रहा है।
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200 से अधिक उद्योग इस प्रदूषण के जिम्मेदार।
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2500 छात्र, शिक्षक और उनके परिजन प्रभावित।
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2001 से लगातार शिकायतें और पत्राचार जारी।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्रवाई और रीको की जिम्मेदारी:
कुछ उद्योगों को बंद किया गया है और 22 लाख रुपए से अधिक का जुर्माना लगाया गया है। रीको को सीईटीपी (कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगाने की जिम्मेदारी दी गई है, जिससे स्थायी समाधान संभव होगा। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि एनजीटी के आदेश के अनुसार सख्त कार्रवाई की जा रही है।