


गिरा अंतरराष्ट्रीय क्रूड, फिर भी भारत में महंगा पेट्रोल-डीजल, जानिए असली वजह
नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें ऐतिहासिक रूप से नीचे आ गई हैं, लेकिन भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम जस के तस बने हुए हैं। आम उपभोक्ता उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें राहत मिलेगी, लेकिन सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क में ₹2 प्रति लीटर की बढ़ोतरी ने उस उम्मीद को झटका दिया है। इससे स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट के बावजूद देश में ईंधन की कीमतें कम नहीं होंगी।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों में बड़ी गिरावट
सोमवार, 7 अप्रैल 2025 को ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 4% गिरकर 63 डॉलर प्रति बैरल से नीचे पहुंच गई, जो वर्ष 2021 के बाद का सबसे न्यूनतम स्तर है। वहीं, WTI क्रूड 59.79 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया, जो चार वर्षों का न्यूनतम स्तर है। अप्रैल के पहले सप्ताह में क्रूड की कीमतें 11% से अधिक गिर चुकी हैं। इसके पीछे सऊदी अरब की कीमतों में कटौती की रणनीति, वैश्विक मंदी की आशंका, और व्यापारिक तनाव जैसे कारण माने जा रहे हैं।
भारत में कीमतें क्यों नहीं घटीं?
जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चा तेल सस्ता हो रहा है, तो भारत में कीमतें क्यों नहीं घट रहीं? इसके दो प्रमुख कारण हैं – रुपये की कमजोरी और सरकारी कर नीति।
- Advertisement -
सोमवार को भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 61 पैसे टूटकर 85.84 पर बंद हुआ। कमजोर रुपये की वजह से भारत को कच्चा तेल आयात करने में अधिक भुगतान करना पड़ रहा है, जिससे सस्ते क्रूड का सीधा फायदा उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच पा रहा।

इसके अलावा, केंद्र सरकार ने हाल ही में पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में ₹2 प्रति लीटर की वृद्धि कर दी है। सरकार का कहना है कि यह बढ़ोतरी पहले के नुकसान की भरपाई के लिए की गई है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि तेल कंपनियों को ₹43,000 करोड़ के घाटे की भरपाई करनी है, इसलिए फिलहाल कीमतों में राहत देना संभव नहीं है।
तेल की कीमतों का निर्धारण कैसे होता है?
भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें कई कारकों पर निर्भर करती हैं — अंतरराष्ट्रीय बाजार के रेट, रुपये का विनिमय दर, उत्पाद शुल्क, वैट, और ऑयल मार्केटिंग कंपनियों का मार्जिन। वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकारें इन पर भारी कर लगाती हैं, जिससे तेल की कीमतों में गिरावट का लाभ सीमित रह जाता है।
क्या उपभोक्ताओं को भविष्य में राहत मिल सकती है?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें लंबे समय तक नीचे बनी रहती हैं और रुपये में स्थिरता आती है, तो सरकार उपभोक्ताओं को कुछ राहत दे सकती है। फिलहाल सरकार सतर्क रुख अपनाए हुए है और कीमतों में कोई बदलाव करने के मूड में नहीं दिख रही है।
इसलिए, जब तक वैश्विक स्थिरता नहीं आती और केंद्र सरकार करों में बदलाव नहीं करती, तब तक आम आदमी को पेट्रोल-डीजल की महंगाई से राहत की उम्मीद कम ही है।