


राजस्थान से एक बड़ी खबर सामने आई है, जिसमें राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महिला संविदाकर्मी को मातृत्व अवकाश के मामले में समान अधिकार देने का आदेश दिया है।
महिला कर्मचारी ने 17 साल तक लड़ा अपना हक:
यह मामला 17 साल पुराना है, जिसमें एक महिला संविदाकर्मी ने मातृत्व अवकाश के लिए राज्य सरकार के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी। महिला ने 2008 में अपनी बेटी को जन्म दिया, और इसके लिए उसने 6 महीने का मातृत्व अवकाश मांगा था। लेकिन, चूंकि वह संविदाकर्मी थी, उसे सिर्फ 2 महीने का अवकाश ही मंजूर किया गया।
महिला ने इसके खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन मानते हुए याचिका दायर की थी।
हाईकोर्ट ने किया टिप्पणी:
राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि “मां एक मां होती है, चाहे वह नियमित कर्मचारी हो या संविदाकर्मी”। कोर्ट ने यह भी कहा कि संविदाकर्मी महिला के नवजात शिशु को भी नियमित कर्मचारियों की तरह जीवन का समान अधिकार मिलना चाहिए।
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संविधान का उल्लंघन माना:
हाईकोर्ट ने महिला को केवल दो महीने का मातृत्व अवकाश देने को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन माना और उसे अधिकारों के तहत समान अधिकार देने की बात कही।
वेतन और ब्याज का आदेश:
कोर्ट ने मामले के 17 साल बाद याचिकाकर्ता महिला को अतिरिक्त वेतन 9% प्रति वर्ष ब्याज के साथ देने का आदेश भी दिया। यह आदेश न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने बसंती देवी की याचिका को मंजूर करते हुए दिया।
यह मामला साल 2003 का है, जब महिला को नर्स ग्रेड-द्वितीय के रूप में नियुक्त किया गया था।