


बीकानेर। सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के 23 बैच के 50 सहपाठी चले आये अपने वर्तमान अपने परिवारों के साथ अपने अतीत में झांकने के लिये । ये सम्भव हो पाया उनके बीच उपस्थित उनके बैच के “युग पुरुष डॉ प्रवीण मंगलूनिया के कारण । ये वो धागा था जिसने माला के मोतियों की तरह सब सहपाठियों को एक साथ पिरो दिया । सब अपने फील्ड के महारथी ,अपने इलाके के नामी चिकित्सक पर सब अपना काम छोड़, मरीजो की दुनिया से निकल चले आये यादों के झरोखे से झांकने के लिये ।
सबकी पहली मुलाकात हुई अपनी थड़ी पर अपना स्नेह एक दूसरे में बांटते हुवे । डॉ देवेंद्र जैन उर्फ देबू भाई चाय के कप के साथ लाडनू के रसगुल्ले के साथ प्रस्तुत हुवे और गिफ्ट पापड़, बड़ी,सौंफ,….सबकी रसोई के लिये छोड़ गए । डॉ वेद ने डॉ जसविंदर के साथ बीकानेर की मिठाईयों की छटा बिखेर दी । इस थड़ी के जनक डॉ पीयूष राजवंशी भी गंगानगर की रेवाड़ी की बर्फी के साथ वहां भटक रहे थे । कार्यक्रम की संचालक डॉ प्रवीण की बेटी आरुषि के लिए डॉ ज्योति,डॉ रवि,डॉ वेद द्वारा लाये लाजवाब कचौरियों के ढेर को समेटना मुश्किल हो गया । उस पर डॉ बलविंदर का लाया पंजाब का डोडा मिठाई,डॉ मदन के शकर पारे, डॉ पाहवा के लाये अमरूदों की मिठास अलग ही थी ।डॉ राजेन्द्र,……. के लाये फाफड़े और अन्य साथियों द्वारा लाये पकवानों ने हृश्वस्ञ्ज की डिशेस तक पूरी तरह पहुचने का मौका ही नही दिया । डॉ सत्यनारायण जांगिड़ द्वारा लाये तिल पपड़ी के पैकेट तो सबके कमरों में ही भिजवाने पड़े ।
फिर बिंदास मिले शाम की सांस्कृतिक संध्या पर । जयपुर की गुलाबी ठंड,अलावों के बीच रिश्तों की गर्माहट के साथ । कहीं कोई कसक सी भी थी ,इसलिये सबसे पहले उन सहपाठियों को श्रद्धांजलि भी दी जो बीच मे नही थे पर दिलो में बसे हुवे थे । इससे पूर्व दोपहर में भी जॉर्डन में बैठे अपने सहपाठी डॉ कमाल सुभी से भी ऑनलाइन मुलाकात कर उसे एहसास करवाया था तुझे अभी भूले नही है ।
इस बैच मीट में बहुत कुछ लीक से हट कर भी हुवा । डॉ योगेश पाहुजा की पत्नी डॉ संगीता द्वारा लिखी पुस्तक वक्त की दास्तान का विमोचन भी हुवा । कितना सटीक था ये शीर्षक सब अपने अतीत के साथ अपने वर्तमान को जीने पहुंचे थे ।
फिर था डॉ रश्मि का क्लिनिकल काव्य पाठ ,
कुछ अजब कुछ गजब ।
मेडिकल के सब्जेक्ट्स और हमारी व्यथा को एक साथ जोड़ कर दी हुई बेहतरीन प्रस्तुति ।
बेहतरीन म्यूजिक और सांस्कृतिक संध्या के माहौल में डॉ राजकुमार मक्कड़ और डॉ दीपिका के डांस तो बनता ही था। डॉ शारदा पिलानिया/महला के नृत्य ने सबका मन मोह लिया । डॉ शरद ने कॉलेज समय के बाद यहां भी स्टेज पर कब्ज़ा बरकरार रखा,उनकी किशोर दा के गीत की मिमिक्री फिर से जीवंत हो गयी । डॉ पाहवा,डॉ बृजेश, डॉ देवेंद्र …..की धर्मपत्नियो के मधुर गीतों ने कुछ पलो के लिये उन्हें अंगूर की बेटी के जाल से निकलने को मजबूर कर ही दिया और सबको मंत्र मुग्ध कर दिया । डॉ ज्योति का स्टेज पर गीत कुछ सुस्त था उनसे फ़ास्ट तो स्टेज के नीचे के लोग उनके लिये गा रहे थे ,पल पल दिल के पास तुम रहती हो । इस सांस्कृतिक सन्ध्या में एक विलक्षण प्रतिभा ने भी अपना जादू बिखेरा ,डॉ उषा बाटला के बेटे …ने । इतनी कम उम्र में क्लासिक संगीत के लिये इतना रुझान ,साधुवाद ।
डॉ दीपिका के इतना मस्त-मौला होने का राज उनके पति डॉ वीरेंदर की शेरो-शायरी,गज़लों से छलक रहा था । सभी सहपाठी सांस्कृतिक संध्या में बिंदास नाचे । कुछ अंगूर की बेटी के साथ नाचे कुछ अपनी मस्ती के साथ । सब बिंदास नाचे ।
अंत मे इस यादगार मुलाकात के लिये मंगलूनिया परिवार का आभार तो बनता ही था ।
आखिर में हर जश्न के बाद का वायदा होता ही ही है, चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना कभी अलविदा ना कहना ,कभी अलविदा ना कहना . ….पर सत्य यही है हमारे बहुत से साथी छूट गए है और अगली बार आगे कुछ और भी छूटते जाएंगे ।
अगली मीट के लिए डॉ देवेंद्र सालासर,डॉ जसविंदर कुम्भलगढ़ का आश्वासन दे रहे है । डॉ शारदा का वर्षो पुर्व बैचमीट करने का वायदा अभी अधूरा है । देखना है कौन दिलदार अबकी बार बैचमीट करवा कर मोर्चा मारता है ।
24 सुबह की पाहवा- बृजेश की साईकल राइड के बाद बहुत से लोग 25 को साईकल राइड और मॉर्निंग वॉक पर निकल रहे है । कुछ कैरम और बिलियर्ड पर हाथ साफ करेंगे और कुछ क्रिकेट और जिम में दम-खम दिखलायेंगे । सर्दी के तेवर देखते हुवे स्विमिंग पूल के तो दूर से ही निकल जाएंगे ।
डॉ पीयूष राजवंशी की कलम से…
आज तक, अब तक,
लिखूंगा कब तक ।
आगे के लिये आपकी कलम का इंतज़ार ..
.साथ ही छूट गए अबके और पुराने संस्मरणो को जोड़ते जाने की इच्छा का इजहार ।
