नई पीठ करेगी मामले की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की जिस पीठ के सामने यह मामला रखा जाएगा, उसमें मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत के साथ न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अटॉर्नी जनरल मसीह शामिल होंगे। अदालत ने यह कदम उस व्यापक विरोध और बहस के बीच उठाया है, जो अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर हाल के फैसलों के बाद उत्तर भारत के कई राज्यों में देखने को मिला है।
अरावली की परिभाषा पर क्यों उठा विवाद
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पहाड़ियों को “पर्वत” मानने के लिए तय किए गए नए मानकों को लेकर पर्यावरणविदों, सामाजिक संगठनों और स्थानीय लोगों में असंतोष है। कई लोगों का मानना है कि इस नई परिभाषा से अरावली के बड़े हिस्से को खनन और निर्माण गतिविधियों के लिए खोला जा सकता है, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होगा।
दिल्ली के लिए जीवनरेखा है अरावली
करीब दो अरब वर्ष पुरानी मानी जाने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला केवल हरियाणा और राजस्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि दिल्ली के पर्यावरण संतुलन में भी इसकी अहम भूमिका है। विशेषज्ञों के अनुसार, अरावली पहाड़ियां राजधानी को अत्यधिक गर्मी, धूल भरी आंधियों और रेगिस्तान के विस्तार से बचाने में प्राकृतिक अवरोध का काम करती हैं। साथ ही यह वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने और भूजल स्तर बनाए रखने में भी मददगार हैं।
पहले क्या फैसला आया था
20 नवंबर को अरावली से जुड़े एक अन्य मामले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया था। उस पीठ में न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया भी शामिल थे। फैसले में कहा गया था कि जिन पहाड़ियों की ऊंचाई 100 मीटर से अधिक है और जिनके बीच की दूरी 500 मीटर तक है, उन्हें अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा माना जाएगा।
इस मानक के दायरे से बाहर आने वाले क्षेत्रों में सीमित खनन गतिविधियों की अनुमति देने की बात कही गई थी। यह निर्णय केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित एक समिति की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया था।
अदालत की चिंता क्या थी
उस समय सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की थी कि यदि पूरे क्षेत्र में खनन पर पूरी तरह रोक लगाई जाती है, तो अवैध खनन की घटनाएं बढ़ सकती हैं। इसी तर्क के आधार पर कुछ इलाकों में नियंत्रित गतिविधियों की अनुमति दी गई थी।
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने खुद इस मुद्दे पर संज्ञान लिया है, तो यह माना जा रहा है कि अरावली की परिभाषा, संरक्षण और विकास के बीच संतुलन को लेकर एक बार फिर व्यापक समीक्षा हो सकती है। सोमवार की सुनवाई से इस पूरे विवाद की दिशा तय होने की उम्मीद है।