अरावली पर्वतमाला पर सरकार का रुख साफ, खनन को लेकर कोई ढील नहीं
जयपुर। अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय के बाद उठ रहे सवालों पर केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री और अलवर सांसद भूपेंद्र यादव ने स्थिति पूरी तरह स्पष्ट कर दी है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अरावली क्षेत्र में खनन को लेकर किसी भी प्रकार की अतिरिक्त छूट न तो दी गई है और न ही भविष्य में दी जाएगी।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि नई व्यवस्था के तहत अरावली क्षेत्र का केवल 0.19 प्रतिशत हिस्सा ही खनन के लिए योग्य माना गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक वैज्ञानिक अध्ययन और विस्तृत प्रबंधन योजना पूरी नहीं हो जाती, तब तक किसी भी नई माइनिंग लीज को मंजूरी नहीं दी जाएगी।
अरावली की परिभाषा पहले से लागू, कोई नया बदलाव नहीं
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भूपेंद्र यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली को लेकर जो परिभाषा दी गई है, वह कोई नई अवधारणा नहीं है। यह वही परिभाषा है जो वर्ष 2002 में तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार के दौरान गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर पहले से लागू है। इसके अनुसार स्थानीय भूमि स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियां अरावली पर्वतमाला का हिस्सा मानी जाती हैं और इन क्षेत्रों में खनन प्रतिबंधित है।
उन्होंने बताया कि पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अरावली रेंज 37 जिलों में लगभग 1,43,577 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है, जिसमें से केवल 277.89 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही खनन लीज के अंतर्गत आता है।
तीन राज्यों में सीमित क्षेत्र ही खनन योग्य
केंद्रीय मंत्री के अनुसार, खनन के लिए योग्य इस सीमित क्षेत्र में राजस्थान के 20 जिलों में 247.21 वर्ग किलोमीटर, गुजरात में 27.35 वर्ग किलोमीटर और हरियाणा में मात्र 3.33 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शामिल है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन द्वारा सस्टेनेबल माइनिंग के लिए एक विस्तृत मैनेजमेंट प्लान तैयार किया जाएगा।
अरावली को नुकसान की आशंका निराधार
भूपेंद्र यादव ने उन आशंकाओं को भी खारिज किया जिनमें कहा जा रहा था कि नई परिभाषा से अरावली नष्ट हो जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि 100 मीटर ऊंचाई का मतलब केवल पहाड़ी की चोटी नहीं, बल्कि चोटी से लेकर उसके आधार तक का पूरा क्षेत्र अरावली में शामिल माना जाएगा। साथ ही, यदि दो पहाड़ियों के बीच 500 मीटर तक का अंतर है, तो वह क्षेत्र भी अरावली रेंज का ही हिस्सा रहेगा।
अरावली ग्रीन वॉल परियोजना पर सरकार का फोकस
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार लंबे समय से ‘अरावली ग्रीन वॉल’ परियोजना पर काम कर रही है। लगभग 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली यह दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। उन्होंने दोहराया कि केंद्र सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है कि अरावली पर्वतमाला को हरित, सुरक्षित और पर्यावरणीय संतुलन के अनुकूल बनाए रखा जाए।
उन्होंने यह भी कहा कि पहले अरावली क्षेत्र की स्पष्ट परिभाषा न होने के कारण खनन अनुमति में कई अनियमितताएं सामने आती थीं, जिन्हें अब सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से व्यवस्थित किया जा रहा है।

