नई दिल्ली। करीब 2.5 अरब साल पुरानी अरावली पर्वतमाला केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि उत्तर-पश्चिम भारत की जीवन रेखा मानी जाती है। पर्यावरण विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि अरावली के प्राकृतिक स्वरूप के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ की गई, तो इसके परिणाम केवल राजस्थान तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के पर्यावरण संतुलन को गहरा नुकसान पहुंच सकता है।
दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में शामिल अरावली
अरावली पर्वतमाला की उत्पत्ति कैम्बियन युग में मानी जाती है और इसे विश्व की सबसे पुरानी पर्वत प्रणालियों में गिना जाता है। इसकी कुल लंबाई लगभग 692 किलोमीटर है, जिसमें से करीब 550 किलोमीटर हिस्सा राजस्थान में फैला हुआ है। इसकी सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर है, जो सिरोही जिले में स्थित है और समुद्र तल से 1,727 मीटर ऊंची है।
100 मीटर की परिभाषा पर उठे सवाल
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहाड़ियों को परिभाषित करने के लिए 100 मीटर ऊंचाई के मानक को स्वीकार किया गया है। इसके अनुसार, स्थानीय धरातल से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचा भूभाग ही अरावली पर्वतमाला का हिस्सा माना जाएगा।
पर्यावरणविदों का कहना है कि इस परिभाषा के लागू होने से अरावली का लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र खनन, निर्माण और व्यावसायिक गतिविधियों के लिए खुल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा हुआ तो पहाड़ी क्षेत्र धीरे-धीरे रेगिस्तान में तब्दील हो जाएंगे।
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पर्यावरण कार्यकर्ता हिमांशु ठक्कर की चेतावनी
प्रख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता और शोधकर्ता डॉ. हिमांशु ठक्कर का कहना है कि अरावली केवल भौगोलिक संरचना नहीं, बल्कि जीवन को बनाए रखने वाली प्राकृतिक प्रणाली है। नदियां, वन, वन्यजीव, वनस्पतियां और वायु संतुलन—all अरावली से जुड़े हुए हैं।
उनके अनुसार, केवल ऊंचाई के आधार पर अरावली को परिभाषित करना वैज्ञानिक दृष्टि से अव्यावहारिक और खतरनाक है। यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए गंभीर पर्यावरणीय संकट को न्योता देने जैसा होगा।
आने वाली पीढ़ियों पर पड़ेगा असर
पर्यावरण लेखक और चिंतक अभिषेक शर्मा का कहना है कि अरावली पर्वतमाला राजस्थान की जलवायु, वर्षा प्रणाली, भूजल स्तर, जैव विविधता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इसे सीमित मापदंडों में बांधने से इसके संरक्षण की भावना कमजोर होगी।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में राजस्थान को गंभीर जल संकट, बढ़ते मरुस्थलीकरण और पारिस्थितिक असंतुलन का सामना करना पड़ेगा।
राजस्थान की लाइफ लाइन क्यों है अरावली
शुष्क और अर्ध-शुष्क राजस्थान में अरावली पर्वतमाला प्राकृतिक जल संचयन और भूजल रिचार्ज का सबसे बड़ा स्रोत है। प्रदेश के कई प्रमुख बांध, झीलें और जलाशय इसी क्षेत्र में स्थित हैं, जो पेयजल और सिंचाई के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
अरावली थार मरुस्थल के विस्तार को रोकने वाली एक प्राकृतिक दीवार की तरह कार्य करती है। इसके कमजोर होने से रेगिस्तान का फैलाव तेज हो सकता है और उपजाऊ भूमि बंजर बनने का खतरा बढ़ जाएगा। साथ ही, बंगाल की खाड़ी से आने वाला मानसून भी कमजोर पड़ सकता है।
‘अरावली नहीं बची तो कुछ नहीं बचेगा’
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अरावली संरक्षण को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि अरावली की छोटी पहाड़ियां भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी बड़ी चोटियां। अगर सुरक्षा दीवार की एक भी ईंट हटी, तो पूरी संरचना कमजोर हो जाती है।
गहलोत ने ‘अरावली बचाओ मुहिम’ और #SaveAravalli अभियान का समर्थन करते हुए कहा कि 100 मीटर की परिभाषा लागू होने से अरावली का बड़ा हिस्सा खनन और व्यावसायिक गतिविधियों की भेंट चढ़ सकता है। उन्होंने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से इस परिभाषा पर पुनर्विचार करने की अपील की है।
एनसीआर के लिए फेफड़ों जैसी है अरावली
अरावली पर्वतमाला और इसके जंगल दिल्ली-एनसीआर और आसपास के शहरों के लिए ‘फेफड़ों’ की तरह काम करते हैं। ये धूल भरी आंधियों को रोकते हैं और वायु प्रदूषण को कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जब अरावली के रहते पर्यावरण की स्थिति इतनी गंभीर है, तो इसके बिना हालात कितने भयावह होंगे, इसकी कल्पना भी डरावनी है।


